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DRDO ने ‘Pralay’ Missile का सफल परीक्षण किया – Bharat की Defence Capability को मिला बड़ा बढ़ावा

भारत की रक्षा ताकत को और मज़बूत करते हुए DRDO (Defence Research and Development Organisation) ने अपनी नई सामरिक (tactical) सतह से सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल ‘प्रलय’ का सफल फ्लाइट-टेस्ट किया है। यह मिसाइल उच्च-सटीकता (high precision) के साथ तेज़ी से हमले करने में सक्षम है और इसे भारत की पारंपरिक मिसाइल प्रणाली का अहम हिस्सा माना जा रहा है।
क्या है ‘प्रलय’ मिसाइल?
‘प्रलय’ DRDO द्वारा तैयार की गई एक अत्याधुनिक (state-of-the-art) quasi-ballistic मिसाइल है, जो 150 से 500 किलोमीटर तक के दायरे (range) में लक्ष्य को भेद सकती है। भविष्य में इसके रेंज को और बढ़ाने की योजना भी है।
- पेलोड (Payload): 350–1000 किलोग्राम – यह विभिन्न प्रकार के पारंपरिक वारहेड (जैसे high-explosive fragmentation, penetration-cum-blast और runway-denial म्यूनिशन) ले जाने में सक्षम है।
- स्पीड: टर्मिनल स्टेज में इसकी गति Mach 6.1 (यानी ध्वनि की गति से 6 गुना) तक पहुंच जाती है।
- सटीकता (Accuracy): इसका Circular Error Probable (CEP) 10 मीटर से भी कम है यानी यह निशाने पर लगभग पूरी सटीकता से वार कर सकती है।
- आकार और वजन: वजन करीब 5 टन, लंबाई 7.5 से 11 मीटर और व्यास (diameter) 750 मिमी तक है।
- प्रणोदन (Propulsion): इसमें Maneuverable Re-entry Vehicle (MaRV) तकनीक का इस्तेमाल हुआ है। यह दो-स्टेज सॉलिड-फ्यूल रॉकेट मोटर पर आधारित है, जो मिसाइल को हवा में दिशा बदलने और दुश्मन की एंटी-मिसाइल इंटरसेप्टर सिस्टम से बचने में मदद करता है।
- लॉन्च प्लेटफ़ॉर्म: इसे सड़क से कहीं भी लॉन्च किया जा सकता है। इसके लिए 8×8 BEML Tatra ट्रांसपोर्टर-इरेक्टर लॉन्चर का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे यह जल्दी डिप्लॉय हो सकती है और आसानी से छुपाई भी जा सकती है।
- गाइडेंस सिस्टम: एडवांस्ड इनर्शियल गाइडेंस सिस्टम, जो इसे भारतीय मिसाइल टेक्नोलॉजी की एक बड़ी उपलब्धि बनाता है।
ऑपरेशनल यूज़
यह मिसाइल दुश्मन के एयरबेस, कमांड पोस्ट, रडार साइट्स, फॉरवर्ड मिलिट्री बेस और लॉजिस्टिक डिपो को ध्वस्त करने में सक्षम है – यानी युद्ध के मैदान में ये एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है।
ताज़ा उपलब्धि – जुलाई 2025 के सफल परीक्षण
जुलाई 2025 में DRDO ने ओडिशा के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से ‘प्रलय’ मिसाइल के दो सफल बैक-टू-बैक फ्लाइट-टेस्ट किए।
- इन परीक्षणों में मिसाइल ने अपनी न्यूनतम और अधिकतम रेंज दोनों को सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया।
- टेस्ट के दौरान मिसाइल ने पिन-पॉइंट एक्यूरेसी के साथ तयशुदा लक्ष्य को हिट किया।
- ट्रायल के समय भारतीय थल सेना और वायु सेना के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे, जो इस मिसाइल की जल्द सक्रिय सेवा (active service) में तैनाती का संकेत है।
पहले ही 370 से अधिक ‘प्रलय’ मिसाइलों की खरीद को मंजूरी मिल चुकी है। सेना और वायु सेना इसे LAC (चीन सीमा) और LoC (पाकिस्तान सीमा) पर तैनात करने की तैयारी कर रही हैं।
रणनीतिक महत्व (Strategic Significance)
- सामरिक अंतर की भरपाई:
‘प्रलय’ भारत की पहली कन्वेंशनल (गैर-परमाणु) quasi-ballistic मिसाइल है, जो battlefield use के लिए बनाई गई है। जहां Agni missile series ज़्यादातर स्ट्रैटेजिक (nuclear deterrence) भूमिका में हैं, वहीं ‘प्रलय’ भारत को जवाबी कार्रवाई करने की ताकत देता है – वो भी न्यूक्लियर थ्रेशहोल्ड को छुए बिना। - Mobility और Surprise Attack की क्षमता:
रोड-मोबाइल होने की वजह से इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। इसकी quick deployability दुश्मन को चौंका सकती है और मिसाइल साइलो या आर्टिलरी साइट्स को टारगेट करने की उनकी कोशिशें बेकार कर सकती है। - Counterforce क्षमता:
‘प्रलय’ की सटीकता (accuracy) इतनी उच्च है कि यह दुश्मन के एयरस्ट्रिप, रडार इंस्टॉलेशन, कमांड सेंटर और मिसाइल लॉन्च साइट्स को आसानी से ध्वस्त कर सकती है। - Deterrence और Modernization:
‘प्रलय’ के आने से भारत ने चीन की Dong Feng-12 और पाकिस्तान की Nasr मिसाइल जैसी टैक्टिकल मिसाइलों का जवाब दे दिया है। यह मिसाइल रूस की Iskander मिसाइल की तरह आधुनिक युद्ध के लिए बेहद लचीली (flexible) मानी जा रही है।
विकास और स्वदेशी तकनीक
2015 में ₹332.88 करोड़ की लागत से ‘प्रलय’ प्रोजेक्ट शुरू हुआ। इस मिसाइल के विकास में DRDO ने ballistic missile defence और submarine-launched missile टेक्नोलॉजी का बेहतरीन इस्तेमाल किया।
- Research Centre Imarat (RCI) और DRDO की अन्य प्रयोगशालाओं ने इंडस्ट्री पार्टनर्स के साथ मिलकर इसे विकसित किया।
- 2025 की गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार ‘प्रलय’ को सार्वजनिक रूप से दिखाया गया, जो इसकी ऑपरेशनल रेडीनेस का संकेत है।
‘प्रलय’ मिसाइल का सफल परीक्षण भारत की सामरिक ताकत को नया मुकाम देता है। यह फास्ट, निंबल और एक्यूरेट है – यानी कम समय में बेहद सटीक तरीके से वार कर सकती है। यह भारत को आधुनिक युद्ध में एक मजबूत बढ़त देता है और पड़ोसी देशों की मिसाइल तकनीक को कड़ी चुनौती देता है।
एक लाइन में कहें तो – ‘प्रलय’ भारत की रक्षा क्षमता में ‘गेम-चेंजर’ है, जो देश की सुरक्षा को नई परिभाषा दे रहा है।
National
America का India पर बड़ा एक्शन – Russian Oil Purchases पर 25% Additional Tariff, दोनों देशों के रिश्तों में तनाव की आहट

भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने के फैसले पर अमेरिका ने सख्त रुख अपनाते हुए 25% का अतिरिक्त आयात शुल्क (Tariff) लगा दिया है। यह टैरिफ भारतीय सामानों पर लागू होगा जो अमेरिका को एक्सपोर्ट होते हैं। व्हाइट हाउस ने बुधवार को इसकी पुष्टि की, और इसे एक एक्जीक्यूटिव ऑर्डर (राष्ट्रपति आदेश) के ज़रिए लागू किया गया है।
यह टैरिफ पहले से लागू 25% टैरिफ के अतिरिक्त होगा, यानी कुल मिलाकर 50% शुल्क तक का भार भारतीय उत्पादों पर पड़ सकता है। यह नया नियम 21 दिनों के भीतर लागू हो जाएगा।
व्हाइट हाउस का बयान:
व्हाइट हाउस द्वारा जारी एक फैक्ट शीट में कहा गया कि –
“भारत का रूस से तेल खरीदना अमेरिका के उस प्रयास को कमजोर करता है, जो रूस को यूक्रेन युद्ध से रोकने के लिए किया जा रहा है।”
“भारत इस तेल को सिर्फ खुद इस्तेमाल नहीं कर रहा, बल्कि उसे ओपन मार्केट में बेचना शुरू कर चुका है और इससे अच्छा-खासा मुनाफा भी कमा रहा है। इससे रूस की अर्थव्यवस्था को ताकत मिलती है और वह युद्ध जारी रखने में सक्षम होता है।”
किन वस्तुओं पर लागू होगा टैरिफ?
- यह टैरिफ अधिकांश सामान्य उपभोक्ता उत्पादों (Consumer Goods) पर लागू हो सकता है।
- हालांकि, स्टील, एलुमिनियम और फार्मा सेक्टर (Pharmaceuticals) से जुड़े कुछ आइटम्स को छूट दी गई है।
- सेक्टर-स्पेसिफिक ड्यूटी वाले आइटम्स इस फैसले से प्रभावित नहीं होंगे।
भारत की स्थिति क्या है?
भारत सरकार की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक भारत को यह फैसला “अनुचित दबाव” लग सकता है क्योंकि:
- भारत वैश्विक तेल बाज़ार से सबसे सस्ते विकल्प चुन रहा है।
- रूस से कच्चा तेल खरीदकर भारत उसे रीफाइन कर सस्ते दामों पर बे रहा है, जिससे जनता को फायदा हो रहा है।
कूटनीतिक मोर्चे पर हलचल:
यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही चीन की यात्रा पर जाने वाले हैं। यह यात्रा सात साल बाद हो रही है और इसे जियोपॉलिटिकल बैलेंसिंग के तौर पर देखा जा रहा है।
- अमेरिका को इस दौरे से चिंता हो सकती है क्योंकि वह भारत को एक रणनीतिक सहयोगी के रूप में देखता है।
- अब इस टैरिफ के चलते भारत-अमेरिका के रिश्तों में खटास आ सकती है।
भारत को नुकसान या मौका?
विशेषज्ञों का मानना है कि:
- यह टैरिफ भारत के MSME सेक्टर और छोटे एक्सपोर्टरों को बड़ा झटका दे सकता है।
- वहीं, भारत इस मौके का इस्तेमाल नए व्यापारिक साझेदार (Alternative Markets) खोजने और अपनी ऊर्जा नीति को और स्वतंत्र बनाने के लिए कर सकता है।
पृष्ठभूमि:
- अमेरिका और रूस के बीच यूक्रेन युद्ध को लेकर तनाव बना हुआ है।
- अमेरिका चाहता है कि दुनिया के देश रूस से दूरी बनाए रखें – खासकर तेल और गैस जैसे क्षेत्रों में।
- भारत ने कई बार स्पष्ट किया है कि वह अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को ध्यान में रखकर फैसले करता है और वह किसी एक ध्रुव की नीति में विश्वास नहीं रखता।
अमेरिका का यह फैसला भारत के लिए एक चुनौतीपूर्ण कूटनीतिक मोड़ साबित हो सकता है। अब सबकी निगाहें भारत की आधिकारिक प्रतिक्रिया और प्रधानमंत्री मोदी की आगामी विदेश यात्रा पर टिकी होंगी।
क्या यह टकराव और गहराएगा या बातचीत से हल निकलेगा? आने वाले हफ्ते इस पर तस्वीर साफ करेंगे।
National
Trump का 25% Tariff, India का सख्त जवाब – “Economyपर असर मामूली, दबाव में नहीं झुकेंगे”

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारतीय एक्सपोर्ट्स पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। लेकिन सरकारी सूत्रों का कहना है कि इसका भारत की अर्थव्यवस्था पर असर ‘बहुत मामूली’ होगा।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस कदम से GDP को 0.2% से ज्यादा नुकसान नहीं होगा। ब्लूमबर्ग को एक इंडिया-बेस्ड इकोनॉमिस्ट ने भी बताया कि GDP में सिर्फ 0.3% तक की सुस्ती आ सकती है। फिलहाल देश का नाममात्र GDP (Nominal GDP) 2024-25 में ₹330.68 लाख करोड़ के आसपास है, ऐसे में 0.2% का असर सरकार के मुताबिक ‘manageable’ है।
इंडिया का साफ संदेश – दबाव में नहीं आएंगे
सरकारी सूत्रों ने साफ कहा है कि भारत किसी भी हाल में अमेरिका के प्रेशर में नहीं आएगा।
- एग्रीकल्चर और डेयरी मार्केट को फोर्सफुली खोलने की मांग नहीं मानी जाएगी।
- बीफ़ (गाय का मांस) या ‘non-veg milk’ (ऐसा दूध जो उन गायों से निकाला गया हो जिन्हें animal-based प्रोडक्ट्स, जैसे बोन मील खिलाया गया हो) के इम्पोर्ट की इजाजत नहीं दी जाएगी।
सूत्रों ने कहा कि ये चीजें भारत के धार्मिक सेंटिमेंट्स को ठेस पहुंचा सकती हैं। साथ ही, सरकार ने ये भी कहा कि वो नेशनल इंटरेस्ट को सुरक्षित रखने और किसानों, उद्यमियों और MSMEs (माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज) की भलाई के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
दूसरी बड़ी खबर – रूस पर ट्रंप की ‘न्यूक्लियर’ चाल
इसी बीच, शुक्रवार को डोनाल्ड ट्रंप ने एक और बड़ा ऐलान कर दुनिया को चौंका दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने अमेरिका की दो न्यूक्लियर सबमरीन्स को रूस के नज़दीक भेजने का आदेश दिया है।
ट्रंप का ये कदम रूस के पूर्व राष्ट्रपति और मौजूदा सिक्योरिटी काउंसिल के डिप्टी हेड दिमित्री मेदवेदेव के ‘खतरनाक बयानों’ के बाद आया।
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Truth Social पर लिखा –
“रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के बेहद उकसाने वाले बयानों के बाद… मैंने आदेश दिया है कि दो न्यूक्लियर सबमरीन्स को सही जगह पर पोज़िशन किया जाए। ये सिर्फ एहतियातन कदम है, ताकि अगर उनके ये मूर्खतापूर्ण और भड़काऊ बयान महज़ शब्दों से ज्यादा साबित हों तो हम तैयार रहें। शब्द बहुत मायने रखते हैं और अक्सर अनचाहे नतीजे ला सकते हैं। उम्मीद है, इस बार ऐसा नहीं होगा।”
एक तरफ ट्रंप के टैरिफ से इंडिया की इकॉनमी को सिर्फ हल्का झटका लगने की बात कही जा रही है, वहीं सरकार ने साफ कर दिया है कि वो अमेरिका के दबाव में आकर अपने एग्रीकल्चर और डेयरी सेक्टर से समझौता नहीं करेगी। दूसरी तरफ ट्रंप का रूस को लेकर न्यूक्लियर सबमरीन भेजने का फैसला दुनियाभर में नई बहस छेड़ रहा है।
Delhi
British Report पर Bharat की सख्त प्रतिक्रिया – “Baseless और Politically Motivated Allegations”

लंदन और नई दिल्ली के बीच इन दिनों एक नया विवाद खड़ा हो गया है। ब्रिटेन की संसद की Joint Committee on Human Rights ने 30 जुलाई को एक रिपोर्ट जारी की, जिसका नाम है “Transnational Repression in the UK”। इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि करीब 12 देश, जिनमें भारत, चीन, रूस, ईरान, पाकिस्तान और UAE भी शामिल हैं, ब्रिटेन में ट्रांसनेशनल रिप्रेशन (Transnational Repression) यानी विदेशी धरती पर अपने आलोचकों और विरोधियों को दबाने जैसी गतिविधियों में शामिल हैं।
रिपोर्ट में क्या कहा गया?
रिपोर्ट के मुताबिक, इन देशों ने ब्रिटेन में रह रहे लोगों पर धमकियों, निगरानी (surveillance) और यहां तक कि INTERPOL Red Notices जैसे अंतरराष्ट्रीय कानूनी टूल का गलत इस्तेमाल किया, ताकि जो लोग इन सरकारों की आलोचना करते हैं, उनकी आवाज़ दबाई जा सके।
रिपोर्ट कहती है कि यह काम सीधे तौर पर डायस्पोरा कम्युनिटी (विदेश में रह रहे लोगों) पर असर डालता है और उन्हें डराने का माहौल बनाता है।
भारत का नाम क्यों आया?
इस रिपोर्ट में भारत का नाम UK में मौजूद कुछ सिख संगठनों और “Sikhs for Justice (SFJ)” नाम की संस्था के दावों पर आधारित है। ये वही संगठन हैं जिन्हें भारत ने पहले ही UAPA कानून के तहत बैन कर रखा है और जिन्हें भारत सरकार लंबे समय से खालिस्तानी एजेंडा फैलाने वाला मानती है। रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत ने Red Notices का राजनीतिक इस्तेमाल किया और कुछ एक्टिविस्ट्स को टारगेट किया।
भारत की कड़ी प्रतिक्रिया
1 और 2 अगस्त को भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने इस रिपोर्ट को पूरी तरह खारिज कर दिया।
MEA के प्रवक्ता रंधीर जैसवाल ने कहा –
- “ये रिपोर्ट बेसलेस (बिनबुनियाद) है।”
- “ये आरोप अनवेरिफाइड (unverified) और डूबियस सोर्सेज़ (dubious sources) पर आधारित हैं, जो ज्यादातर प्रतिबंधित संगठनों और संदिग्ध लोगों से जुड़े हैं।”
भारत ने साफ कहा कि रिपोर्ट में जो भी आरोप लगाए गए हैं, वो राजनीतिक रूप से प्रेरित हैं और इन्हें ऐसे स्रोतों ने हवा दी है जिनका “एंटी-इंडिया होस्टिलिटी” यानी भारत विरोधी एजेंडा साफ दिखाई देता है।
ट्रांसनेशनल रिप्रेशन क्या है?
Transnational Repression एक ऐसा टर्म है, जब कोई देश अपनी सीमाओं से बाहर रह रहे एक्टिविस्ट्स, पत्रकारों या राजनीतिक विरोधियों को धमकियों, निगरानी, झूठे मुकदमों, या इंटरपोल नोटिस जैसे तरीकों से दबाने की कोशिश करता है।
- रिपोर्ट के मुताबिक, चीन, रूस और ईरान इस मामले में सबसे ज्यादा एक्टिव हैं, लेकिन भारत का नाम आने से अब यह मामला कूटनीतिक रूप से संवेदनशील हो गया है।
आगे क्या?
- ब्रिटेन चाहता है कि इन मामलों पर सख्ती से काम हो और डायस्पोरा कम्युनिटीज को सुरक्षा मिले।
- वहीं भारत ने साफ कहा कि वो ऐसे बेसलेस आरोप नहीं मान सकता और रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं।
यह विवाद सिर्फ एक रिपोर्ट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह UK-India रिश्तों को भी प्रभावित कर सकता है। जहां ब्रिटेन अपने यहां रहने वाले लोगों की सुरक्षा की बात कर रहा है, वहीं भारत इसे अपने खिलाफ एक राजनीतिक एजेंडा मान रहा है।
यानी आने वाले दिनों में यह मुद्दा दोनों देशों के बीच कूटनीतिक बातचीत का अहम हिस्सा बन सकता है।
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