Technology
Deepfake Technology: इंसानों के लिए कितना खतरनाक हो रहा है AI?

क्या हम असली या नकली को पहचान सकते हैं? आज की तकनीकी दुनिया में, यह प्रश्न बिल्कुल भी अजीब नहीं है। एक तरफ हम एआई (AI) और बेहतर होती टेक्नलॉजी का लाभ उठा रहे हैं, जो हमें अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने में मदद कर रही है। लेकिन क्या हमने यह सोचा है कि यही टेक्नॉलजी समाज के लिए खतरनाक भी हो सकती है? ऐसी ही टेक्नोलॉजी के बारे में बात करेंगे जिसे Deepfake Technology बोला जाता है।
डीपफेक तकनीक (Deepfake Technology ) एक तरह का कंप्यूटरी टेक्नोलॉजी है। इसमें एक तरह का एल्गोरिदम है जो मौजूदा इमेज या वीडियो को लर्न करके एक नयी तस्वीर तैयार करता है और वो नयी तस्वीर बिल्कुल असली लगने लगती है। इसका मतलब है कि आप एक वीडियो या तस्वीर में किसी दूसरे की तस्वीर को डाल सकते हैं। यह तकनीक उस समय से विकसित हुई है जब लोग इंटरनेट पर अपनी मनमानी वीडियो और तस्वीरें बनाने लगे। इसका उपयोग कई तरह के क्षेत्रों में होता है, जैसे कि सिनेमा, टेलीविजन, और सोशल मीडिया। लेकिन अब यह एक बड़ा खतरा बनकर लोगों के सामने आ रही है। धोखाधड़ी और अपराधिक गतिविधियों में शामिल लोग इसका गलत इस्तेमाल करने लगे है।
Deepfake कैसे बनते हैं?
डीपफेक बनाने के लिए कई सॉफ़्टवेयर और टूल्स उपलब्ध हैं, जिनमें DeepFaceLab, Faceswap, और DeepArt कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। ये टूल्स एक प्रकार के मशीन लर्निंग और एन्क्रिप्टेड न्यूरल नेटवर्क का उपयोग करते हैं जिन्हें सिखाया जाता है कि एक व्यक्ति के चेहरे को दूसरे के चेहरे के साथ कैसे मिलाया जाए।
डीपफेक बनाने की प्रक्रिया में, व्यक्ति के चेहरे की कई तस्वीरें और वीडियोज़ इस्तेमाल किए जाते हैं ताकि कंप्यूटर सीख सके कि व्यक्ति के चेहरे को कैसे बदला जाए। फिर इस जानकारी का उपयोग करके सॉफ्टवेयर वैसा ही दिखने वाला चेहरा बना सामने बना देता है।
Deepfake टेक्नोलॉजी कैसे बनाई गई?
2017 में “डीपफेक” शब्द पहली बार सामने आया, जब एक Reddit उपयोगकर्ता ने साइट पर “डीपफेक” नाम से अश्लील वीडियो शेयर किए। उसने गूगल की ओपन-सोर्स, डीप लर्निंग तकनीक का उपयोग करके मशहूर हस्तियों के चेहरों को अश्लील कलाकारों के शरीर पर बदला। आधुनिक डीपफेक उन मूल कोडों से विकसित हैं, जिन्हें इन वीडियो को बनाने के लिए उपयोग किया गया था।
Deepfake को कैसे पहचानें?
डीपफेक (Deepfake) को पहचानना काफी कठिन हो सकता है, क्योंकि वे तकनीकी रूप से बहुत उन्नत हो गए हैं। लेकिन कुछ तकनीकी और अनुभवी तरीकों के माध्यम से, आप डीपफेक को पहचान सकते हैं। यहां कुछ तरीके हैं जो आपको मदद कर सकते है जैसे कि आंखों की गति, पलकों का झपकना, चेहरे की बनावट, शरीर का आकार, बालों की स्थिति, और त्वचा के रंग को नकली बना देती है। विशेष रूप से, यह व्यक्ति की हरकतों को अजीब तरह से दिखाती है। इसके अलावा, डीपफेक वीडियो में लिप-सिंकिंग भी ठीक से नहीं होती, जिससे आवाज़ और चेहरे को पहचाना जा सकता है। यदि आपको फिर भी संदेह हो रहा हैं, तो टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट द्वारा इसकी जाँच कराना एक उत्तम विकल्प हो सकता है।
Deepfake को पहचानने के लिए इन AI टूल्स का कर सकते हैं इस्तेमाल
आप AI टूल्स का उपयोग करके डिपफेक वीडियो को पहचान सकते है। उदाहरण के लिए, AI or Not और Hive Moderation जैसे टूल्स आपको AI Generated फेक वीडियो को पहचानने और उसे संशोधित करने में मदद कर सकते हैं, जिससे आप असली और नकली का पता लगा सकते है। विशेष रूप से, Deepware Scanner जैसे टूल्स डीपफेक पहचानने में आपकी मदद करेंगे। जो आजकल बढ़ते हुए ऑनलाइन मीडिया में एक महत्वपूर्ण समस्या बनी गयी है।
इसका इस्तेमाल कौन करते है?
यह अनुसंधानकर्ताओं से लेकर, उन व्यक्तियों तक उपयोगी हो सकता है जो शैक्षिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करते हैं, तथा फिल्म उद्योग खुफिया संगठन से लेकर पॉर्न प्रोड्यूसर तक हर सेक्टर में इसका इस्तेमाल हो रहा है। कई बार सरकारें भी इसका उपयोग अपराधियों के पते लगाने के लिए करती हैं।
इसका सही इस्तेमाल करना और जिम्मेदारी से उपयोग करना हमारी आवश्यकता है। हमें तकनीक के साथ जुड़े हर गलत और सही चीज को समझने और उसके परिणामों को समझने की आवश्यकता है। इसके माध्यम से हम नकली खबरों और धोखाधड़ी जैसी चीजों का सामना कर सकते हैं, और सोशल मीडिया पर अश्लीलता और भ्रांतियों के खिलाफ लड़ सकते हैं। इसके अलावा, सही तकनीकी साधनों का उपयोग करके हम वित्तीय धोखाधड़ी और अपराधिक गतिविधियों से बच सकते हैं। इसलिए, हमें तकनीक के साथ सचेत और जिम्मेदार रहना चाहिए, ताकि हम समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकें और सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण बना सकें।
Technology
OpenAI के CEO सैम ऑल्टमैन बोले – “2026 तक AI इंसानों के साथ काम करने वाले Virtual साथी बन जाएंगे”

OpenAI के CEO सैम ऑल्टमैन ने हाल ही में एक इवेंट (Snowflake Summit 2025) में बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI केवल एक टूल नहीं रहेगा, बल्कि यह हमारे साथ काम करने वाला वर्चुअल teammate बन जाएगा। उन्होंने बताया कि 2026 तक AI इस काबिल हो जाएगा कि वो नई जानकारी खुद ढूंढ सके और बड़ी-बड़ी problems भी solve कर सके।
AI एजेंट्स होंगे जैसे जूनियर कर्मचारी
सैम ऑल्टमैन ने कहा कि आज जो AI एजेंट्स हैं, वो ठीक वैसे ही काम करते हैं जैसे कोई नया employee करता है। आप उन्हें task देते हैं, फिर फीडबैक देते हैं और वो हर बार बेहतर काम करना सीखते हैं। आने वाले समय में यही AI एजेंट्स बहुत smart हो जाएंगे और जटिल काम (complex tasks) भी आसानी से कर सकेंगे।
AI के साथ काम करने की आदत डालनी होगी
ऑल्टमैन का कहना है कि AI हमारे काम का तरीका बदल देगा। जैसे आज हम कंप्यूटर या इंटरनेट के बिना काम नहीं कर सकते, वैसे ही आने वाले सालों में AI के बिना काम करना मुश्किल हो जाएगा। कंपनियों को AI के साथ human teams बनानी होंगी, जिससे productivity और तेजी दोनों बढ़ें।
GPT-4.5 और GPT-5 जैसे मॉडल ला रहे बदलाव
OpenAI पहले ही GPT-4.5 जैसे powerful मॉडल ला चुका है, जो कई तरह के सवालों का जवाब दे सकता है, conversation कर सकता है और आपकी language भी समझ सकता है। अब कंपनी GPT-5 पर काम कर रही है, जो और भी ज्यादा intelligent और capable होगा। इसकी मदद से AI और तेजी से सीखेगा और काम करेगा।
AI से नौकरियों पर असर?
सवाल उठता है – क्या AI लोगों की jobs ले लेगा? रिपोर्ट्स बताती हैं कि कुछ jobs जो repetitive (बार-बार होने वाले) कामों पर आधारित हैं, उनमें AI की वजह से बदलाव जरूर आ सकता है। कई कंपनियां, जैसे Shopify और Duolingo, पहले ही AI को अपना चुकी हैं और कुछ roles को कम कर चुकी हैं। लेकिन ऑल्टमैन का कहना है कि AI से डरने की बजाय, उसे एक tool की तरह अपनाना चाहिए।
AI और Superintelligence की ओर कदम
OpenAI अब superintelligence की दिशा में भी काम कर रहा है। इसका मतलब है ऐसा AI जो इंसानों से भी ज्यादा तेज़ और समझदार हो। इसका उपयोग scientific discoveries, health research और innovation में किया जाएगा।
सैम ऑल्टमैन की बातों से साफ है कि आने वाले 1-2 सालों में AI हमारे काम करने के तरीके को पूरी तरह बदल सकता है। यह सिर्फ एक software नहीं रहेगा, बल्कि हमारा teammate बनकर हमारे साथ काम करेगा। हां, इससे बदलाव जरूर आएगा, लेकिन अगर हम इसे समझदारी से अपनाएं तो यह हमारे लिए फायदेमंद साबित होगा।
अगर आप भी future-ready बनना चाहते हैं, तो आज से ही AI को समझना और उसके साथ काम करना सीखना शुरू कर दीजिए।
National
भारत ने रखा global entertainment superpower बनने का पहला कदम – WAVES Summit 2025 से बदलेगा content creation का भविष्य

मुंबई: भारत ने एंटरटेनमेंट की दुनिया में इतिहास रच दिया है। देश का पहला अंतरराष्ट्रीय स्तर का मीडिया समिट – WAVES Summit 2025 (World Audio Visual and Entertainment Summit) – हाल ही में मुंबई के Jio World Convention Centre में भव्य रूप से आयोजित किया गया। इस समिट ने न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर के एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के सितारों और कंटेंट क्रिएटर्स को एक मंच पर एकत्र किया।
प्रधानमंत्री मोदी का बड़ा ऐलान – अब भारत में बनेगा IICT
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर एक ऐतिहासिक घोषणा की – भारत में Indian Institute of Creative Technology (IICT) की स्थापना की जाएगी। इस संस्थान में बच्चों और युवाओं को animation, VFX, gaming, content creation जैसी आधुनिक और वैश्विक स्तर की स्किल्स सिखाई जाएंगी। यह कदम भारत को डिजिटल क्रिएटिव इंडस्ट्री में आगे बढ़ने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।

1 बिलियन डॉलर का Creator Economy Fund
सरकार ने क्रिएटिव इकॉनमी को बूस्ट देने के लिए $1 Billion Creator Economy Fund लॉन्च करने की योजना बनाई है। इसका मकसद नए कंटेंट क्रिएटर्स को फाइनेंशियल सपोर्ट, प्लेटफॉर्म और संसाधन उपलब्ध कराना है ताकि भारत का हर कोना एक क्रिएटिव सेंटर बन सके।
बॉलीवुड से हॉलीवुड तक – ग्लोबल सेलेब्रिटीज की मौजूदगी
इस समिट में शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण, करीना कपूर जैसे बॉलीवुड सितारों के अलावा दुनियाभर के क्रिएटर्स, AI एक्सपर्ट्स, और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स के लीडर्स भी शामिल हुए।
- शाहरुख खान ने युवाओं से अपील की: “Respect every woman, no matter what platform you’re on.”
- दीपिका पादुकोण ने अपनी जर्नी को याद किया और बताया कि कैसे उन्होंने इंडस्ट्री में एक outsider होकर अपनी जगह बनाई।
- करीना कपूर ने एक दिलचस्प किस्सा शेयर किया जब स्टीवन स्पीलबर्ग ने उन्हें पहचान कर पूछा – “Are you the girl from the Indian film about three students?”
(स्पीलबर्ग 3 Idiots फिल्म की बात कर रहे थे!)
फोकस में Future Tech – AI, Metaverse और भारतीय टैलेंट
समिट में AI, Metaverse, AR/VR, और डिजिटल प्रोडक्शन टूल्स जैसे फ्यूचर-टेक्नोलॉजी पर खास सेशन्स हुए। स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स, डिजिटल स्टूडियोज, और इंडिपेंडेंट क्रिएटर्स ने अपने विचार साझा किए कि कैसे तकनीक भारत को ग्लोबल कंटेंट हब बना सकती है।
2029 तक 50 बिलियन डॉलर की एंटरटेनमेंट इकॉनमी का लक्ष्य
भारत का लक्ष्य है कि 2029 तक अपनी एंटरटेनमेंट इकॉनमी को $50 Billion तक पहुंचाया जाए। मौजूदा समय में भारत दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते कंटेंट मार्केट्स में से एक है, और इस समिट ने स्पष्ट कर दिया कि आने वाला दशक भारत के डिजिटल क्रिएटिव राइज का होगा।
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डिजिटल इंडिया की दिशा में बड़ा कदम: केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लॉन्च किया नया आधार App।

डिजिटल इंडिया की दिशा में एक अहम कदम के रूप में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक नया आधार App लॉन्च किया है, जो आधार सत्यापन को आसान और सुरक्षित बनाएगा। इस App को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि इसका इस्तेमाल यूपीआई पेमेंट जितना सहज होगा। अब उपयोगकर्ता एक टैप से अपनी पहचान सत्यापित कर सकेंगे, जिससे समय की बचत होगी और गोपनीयता भी सुरक्षित रहेगी। मंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस App के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह फिलहाल बीटा टेस्टिंग में है और जल्द ही इसे आम जनता के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।
सरकार का दावा है कि यह App भौतिक आधार कार्ड या उसकी फोटोकॉपी की आवश्यकता को समाप्त कर देगा और उपयोगकर्ताओं को अपनी जानकारी पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान करेगा। कई लोगों के लिए यूआईडीएआई द्वारा जारी आधार कार्ड को भौतिक रूप में रखना और बार-बार उसकी फोटोकॉपी कराना परेशानी बन गया था। साथ ही, गोपनीयता का मुद्दा भी उठा। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए सरकार ने एक सुरक्षित और डिजिटल समाधान पेश किया है। नया आधार App, जो अब उपयोगकर्ताओं को अपनी जानकारी डिजिटल रूप से साझा करने की अनुमति देगा।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस नए App के जरिए यूजर फेस ऑथेंटिकेशन की मदद से अपने आधार को सत्यापित कर सकेंगे, ठीक वैसे ही जैसे हम अपने फोन को अनलॉक करते हैं। इस सुविधा के साथ, उपयोगकर्ताओं को अब स्कैन या फोटोकॉपी करने की आवश्यकता नहीं होगी। अब सम्पूर्ण सत्यापन App के माध्यम से किया जा सकता है।
मंत्री ने आगे कहा कि अब होटल, दुकान या यात्रा के दौरान चेक-इन के समय आधार की फोटोकॉपी देने की आवश्यकता नहीं होगी। उपयोगकर्ताओं की सहमति के बिना जानकारी साझा नहीं की जाएगी। App को पूरी तरह सुरक्षित बनाया गया है ताकि आधार से जुड़ी कोई भी निजी जानकारी लीक न हो।
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