Chandigarh
जन शिक्षण संस्थान चंडीगढ़ में 2023 -24 एडवांस स्किल कोर्सेज की शुरुआत
जन शिक्षण संस्थान के प्रांगण में जन शिक्षण संस्थान में 2023 -24 एडवांस स्किल कोर्सेज की शुरुवात हुई I इस अवसर पर छात्रों को प्रोत्साहन देने के लिए प्रोफ़ D.P त्रिपाठी , डॉक्टर T.N गिरी और प्रोफ मुरली मनोहर पाठक, वाईस चांसलर ऑफ़ (श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली ) पहुंचे I
उन्होने छात्रों को अपने सपनो को साकार करने के लिए हिम्मत और मेहनत से आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी I इस अवसर पर बोर्ड ऑफ़ मैनेजमेंट के मेंबर Ms शिप्रा बंसल भी मौजूद रही I उन्होने छात्रों को नए जीवन के लिए मुबारक बाद दी और जन शिक्षण संस्थान के वाईस चेयरमैन G.S. ढिल्लों और डायरेक्टर डॉक्टर अरविन्द सिंघी ने भी छात्रों को जीवन में आगे बढ़ने के प्रेरणा दी।
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Immigration Fraud का बड़ा खुलासा – Chandigarh Police ने दो कुख्यात ठगों को दबोचा, पहले Moosewala Case के आरोपियों के लिए भी बनाए थे Fake Passports

चंडीगढ़ पुलिस ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय दो बड़े इमिग्रेशन ठगों को गिरफ्तार किया है, जो लंबे समय से नकली पासपोर्ट, वीज़ा और दूसरे दस्तावेज़ बनाकर लोगों को विदेश भेजने का झांसा दे रहे थे। पुलिस के मुताबिक, इनमें से एक आरोपी पहले सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड के साज़िशकर्ताओं के लिए भी फर्जी पासपोर्ट तैयार कर चुका है।
गिरफ्तार आरोपियों की पहचान हरमीत सिंह उर्फ़ टीटू चांद (42), निवासी कपूरथला, पंजाब और अरजित कुमार उर्फ़ अजीत, टोनी या पाजी (58), निवासी रानी बाग, दिल्ली के रूप में हुई है।
कैसे करते थे ठगी
ये दोनों खुद को ट्रैवल एजेंट बताकर ग्राहकों को विदेश भेजने के सपने दिखाते थे। वे आकर्षक वीज़ा पैकेज ऑफर करते, लाखों रुपये वसूलते और फिर पीड़ितों को नकली वीज़ा, फर्जी टिकट और जाली डॉक्युमेंट पकड़ा देते। जब लोग एयरपोर्ट पर पकड़े जाते तो आरोपी ऑफिस छोड़कर गायब हो जाते। और तो और, रिफंड मांगने पर पीड़ितों को धमकाते भी थे।
शिकायत से खुला राज़
मामला तब सामने आया जब मंजीत सिंह, निवासी कैथल (हरियाणा) ने पुलिस में शिकायत दी।
- अगस्त 2022 में मंजीत की मुलाकात हरमीत से हुई, जो सेक्टर 34-A, चंडीगढ़ में गुरु टूर एंड ट्रैवल्स चलाता था।
- हरमीत ने ग्रीस वीज़ा दिलाने का वादा किया – ₹10 लाख प्रति व्यक्ति के हिसाब से।
- मंजीत और उनके रिश्तेदारों ने हरमीत, अरजित और उनके साथियों को ₹1 करोड़ से ज़्यादा ट्रांज़ैक्शन में दिए।
- 19 सितंबर 2022 को एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन अधिकारियों ने उनके वीज़ा फर्जी बता दिए।
- इसके बाद आरोपी ऑफिस छोड़कर फरार हो गए और कानूनी कार्रवाई रोकने के लिए धमकाने लगे।
- मई 2024 में सेक्टर 34 पुलिस स्टेशन, चंडीगढ़ में FIR दर्ज हुई।
आरोपियों का आपराधिक रिकॉर्ड
- हरमीत सिंह: 8वीं तक पढ़ाई, पंजाब में कई धोखाधड़ी और इमिग्रेशन स्कैम में केस दर्ज, पंजाब ट्रैवल प्रोफेशनल्स एक्ट के तहत भी कार्रवाई हो चुकी।
- अरजित कुमार: ग्रेजुएट, दिल्ली और हरियाणा में कम से कम 8 FIRs, IPC, Emigration Act, Passport Act और Arms Act के तहत केस। पहले दिल्ली स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया था – उसने अनमोल बिश्नोई और सचिन ठप्पन (मूसेवाला मर्डर केस के आरोपी) के लिए नकली पासपोर्ट बनाए थे। फिलहाल उस केस में ज़मानत पर था।
पुलिस की कार्रवाई
चंडीगढ़ पुलिस का कहना है कि यह एक बड़ा नेटवर्क है जिसमें और लोग भी शामिल हो सकते हैं। जांच जारी है और आगे और गिरफ्तारियां संभव हैं। पुलिस ने लोगों को सतर्क करते हुए सलाह दी है कि किसी भी ट्रैवल एजेंट से डील करने से पहले उसकी पूरी जांच-पड़ताल ज़रूर करें।
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Punjab Land Pooling Policy पर High Court की रोक – किसानों की जीत, AAP Government को झटका

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने गुरुवार को पंजाब सरकार की लैंड पूलिंग पॉलिसी 2025 के अमल पर अस्थायी रोक (इंटरिम स्टे) लगा दी। यह फैसला लुधियाना के एक किसान की याचिका पर आया, जिसमें दावा किया गया था कि यह पॉलिसी कानूनी प्रावधानों के खिलाफ है और किसानों से बिना सहमति व मुआवजे के ज़मीन छीनने की कोशिश है।
क्या है मामला?
पंजाब कैबिनेट ने जून 2025 में लैंड पूलिंग पॉलिसी को मंजूरी दी थी। सरकार का दावा था कि किसी से ज़मीन ज़बरदस्ती नहीं ली जाएगी। योजना के तहत जो भी किसान अपनी जमीन “पूल” में देंगे, सरकार उस जमीन को डेवलप करेगी और बदले में उन्हें मिलेगा –
- 1 एकड़ जमीन के बदले 1,000 वर्ग गज का रिहायशी प्लॉट
- और 200 वर्ग गज का कमर्शियल प्लॉट
सरकार का कहना था कि यह पॉलिसी किसानों और खरीदारों दोनों के हित में है और लैंड माफिया पर रोक लगाएगी।
याचिका में क्या कहा गया?
किसान ने अदालत में दलील दी कि:
- पॉलिसी को Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition Act, 2013 के तहत लाने की बात कही गई, जबकि इस कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
- इस तरह की पॉलिसी केवल Punjab Regional and Town Planning and Development Act, 1995 के तहत लाई जा सकती है।
- सोशल इंपैक्ट असेसमेंट और एनवायरनमेंट इंपैक्ट असेसमेंट रिपोर्ट न तो तैयार की गई और न ही प्रकाशित।
- किसी भी ग्राम पंचायत या ग्राम सभा से राय नहीं ली गई, जो कि कानून के मुताबिक अनिवार्य है।
सरकार की प्रतिक्रिया
एक वरिष्ठ अधिकारी ने माना कि कोर्ट का फैसला आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि पॉलिसी जल्दबाज़ी में लाई गई थी। उन्होंने कहा, “सोशल और एनवायरनमेंट इंपैक्ट असेसमेंट करवाना चाहिए था, कोर्ट ने भी इस पर सवाल उठाया।”
एक अन्य अधिकारी ने बताया कि यह झटका राजनीतिक और आर्थिक, दोनों मोर्चों पर है। सरकार इस पॉलिसी से फंड जुटाकर 2027 विधानसभा चुनाव से पहले महिलाओं को ₹1,000 प्रति माह देने के वादे को पूरा करना चाहती थी। यह वादा 2022 के चुनाव में किया गया था, लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में इसे पूरा न करना AAP के लिए मुद्दा बन गया।
विपक्ष का हमला
- पंजाब कांग्रेस ने इस फैसले को किसानों की जीत बताया। पार्टी अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने कहा, “हम कानूनी और लोकतांत्रिक तरीके से सरकार को मजबूर करेंगे कि पॉलिसी वापस ले।”
- MLA परगट सिंह ने इसे “लोगों का फैसला” करार दिया, जबकि नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने कहा, “यह किसानों पर हमला है, बिना सहमति और मुआवजे के जमीन लूटने की साजिश है।”
- शिअद प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने आरोप लगाया कि CM भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली बिल्डरों से ₹30,000 करोड़ का डील किया है। उन्होंने 1 सितंबर से मोहाली में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन का ऐलान किया, जो पॉलिसी वापसी तक जारी रहेगा। इसके लिए 3-सदस्यीय कमेटी भी बनाई गई है।
किसानों का रुख
संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने भी हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत किया।
- प्रेम सिंह भांगू (अखिल भारतीय किसान फेडरेशन) ने कहा, “सरकार 65,533 एकड़ उपजाऊ जमीन बिना मुआवजे के लेना चाहती थी।”
- जगमोहन सिंह पटियाला (BKU डकौंडा) ने कहा कि नोटिफिकेशन में उन मजदूरों, दुकानदारों और कारीगरों के पुनर्वास का जिक्र नहीं है जो इस पॉलिसी से प्रभावित होंगे।
AAP का पक्ष
AAP प्रवक्ता नील गर्ग ने कहा, “हम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हैं। विस्तृत आदेश पढ़कर आगे की कार्रवाई करेंगे। यह किसानों और खरीदारों के लिए सबसे अच्छी पॉलिसी है और पूरी तरह स्वैच्छिक है।” उन्होंने इस पर अभी सोशल और एनवायरनमेंट इंपैक्ट असेसमेंट कराने पर स्पष्ट जवाब नहीं दिया।
आगे क्या?
- फिलहाल पॉलिसी पर हाईकोर्ट की रोक लगी हुई है।
- विपक्ष और किसान संगठन इसे पूरी तरह वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
- AAP सरकार कानूनी विकल्पों पर विचार कर रही है, लेकिन राजनीतिक दबाव लगातार बढ़ रहा है।
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Punjab-Haryana High Court ने Advocate की याचिका खारिज की – ‘Judge पर Case Transfer का नहीं है अधिकार’

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को एक महिला वकील की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपने तीन मामलों को एक विशेष जज की अदालत से किसी अन्य अदालत में ट्रांसफर करने की मांग की थी। अदालत ने साफ कहा कि उसके पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है और याचिका “ज्यूरिसडिक्शनल लिमिटेशन” (क्षेत्रीय सीमाओं) के चलते खारिज की जाती है।
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस शील नागु और जस्टिस संजीव बेरी की बेंच ने की। याचिका दायर करने वाली 37 वर्षीय महिला वकील अनुसूचित जाति (SC) समुदाय से हैं और उन्होंने अपने आवेदन में आरोप लगाया था कि जिस जज की अदालत में उनके केस चल रहे हैं, वह पहले बार काउंसिल ऑफ पंजाब एंड हरियाणा (BCPH) से जुड़े रहे हैं। यह वही संस्था है जिससे उन्हें पहले उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। ऐसे में उन्हें न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है और जज का केस सुनना “न्याय के सिद्धांतों” के खिलाफ है।
क्या था मामला?
महिला वकील ने कोर्ट में कहा कि:
- 2022 में गुड़गांव में एक डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी ने उनके साथ यौन उत्पीड़न किया।
- BCPH के कुछ सदस्यों ने उन्हें बार में एंट्री करने से रोका।
- उनके खिलाफ झूठी शिकायतें की गईं, जिनमें से एक पर कोर्ट ने बाद में लीगल नोटिस को खारिज कर दिया।
- 22 जुलाई को उनके खिलाफ एक कंटेम्प्ट नोटिस (अवमानना नोटिस) जारी किया गया, जो उन पर दबाव बनाने की कोशिश थी कि वे एक सीनियर पुलिस ऑफिसर के खिलाफ लगाए गए आरोप वापस लें।
उन्होंने अदालत से यह भी अनुरोध किया कि भविष्य में उनके केस भी उस जज की अदालत में ना लगें, जिससे उन्हें न्याय की उम्मीद नहीं।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने साफ किया कि:
- पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के पास अपने भीतर ही मामलों को एक बेंच से दूसरी बेंच में ट्रांसफर करने का कोई अधिकार नहीं है।
- यदि याचिकाकर्ता को किसी जज के फैसले से आपत्ति है, तो वह लेटर पेटेंट अपील (LPA) दायर कर सकती हैं या फिर सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती हैं।
- अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का काम राज्य सरकार या उसके संस्थानों द्वारा लिए गए फैसलों की वैधता की जांच करना होता है।
- हाईकोर्ट सिर्फ उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है जहां राज्य या उसके अंगों ने कोई गड़बड़ी की हो।
कोर्ट ने कहा,“इस कोर्ट के पास किसी केस को किसी दूसरे हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने का अधिकार नहीं है। इसके लिए याचिकाकर्ता उपयुक्त मंच पर जा सकती हैं।”
क्या विकल्प बचे हैं याचिकाकर्ता के पास?
कोर्ट ने कहा कि अब याचिकाकर्ता:
- LPA (Letter Patent Appeal) फाइल कर सकती हैं अगर उन्हें लगता है कि सिंगल बेंच ने अपने अधिकारों से बाहर जाकर कोई फैसला सुनाया।
- सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती हैं।
- अगर उन्हें निष्पक्ष सुनवाई पर संदेह है, तो वे उचित संवैधानिक या विधिक रास्ते अपना सकती हैं।
कोर्ट का निष्कर्ष
कोर्ट ने अंत में कहा:“इस याचिका में दखल देने की जरूरत नहीं है। याचिकाकर्ता कानून के तहत जो भी उचित विकल्प है, उसे अपना सकती हैं।”
यह फैसला न्यायपालिका की सीमाओं और प्रक्रियाओं को स्पष्ट करता है, खासकर जब बात जज पर ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ के आरोपों की हो। यह भी साफ हुआ कि न्याय पाने के लिए एक वकील के पास कई वैकल्पिक रास्ते उपलब्ध हैं, लेकिन कोर्ट की शक्तियां भी सीमित होती हैं।
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