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Punjab Government का ‘Operation Rahat’: बाढ़ पीड़ितों के लिए नई उम्मीद, 50 परिवारों को मिला सहारा, Minister Bains खुद उतरे मैदान में!

पंजाब में हाल ही में आई बाढ़ ने कई गाँवों की ज़िंदगी पूरी तरह बदल दी है। घरों में पानी घुस गया, फसलें बर्बाद हो गईं और कई परिवारों का सबकुछ तबाह हो गया। ऐसे मुश्किल वक्त में पंजाब सरकार की ओर से शुरू किया गया ‘ऑपरेशन राहत’ पीड़ितों के लिए बड़ी उम्मीद बनकर सामने आया है।
इस पहल की शुरुआत मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में की गई है और इसे अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी शिक्षा मंत्री हरजोत सिंह बैंस ने खुद उठाई है। बैंस ने न सिर्फ योजनाओं की घोषणा की, बल्कि खुद मैदान में उतरकर प्रभावित गाँवों में जाकर लोगों की मदद की।
5 लाख रुपये का निजी योगदान, 50 परिवारों के घर बनेंगे नए सिरे से
बैंस ने अपने परिवार की तरफ से 5 लाख रुपये दान किए हैं। इस राशि से बाढ़ में तबाह हुए 50 परिवारों के घरों की मरम्मत और पुनर्निर्माण का जिम्मा उठाया गया है। उन्होंने कहा कि उनका मकसद केवल पैसों की मदद करना नहीं है, बल्कि हर परिवार तक यह भरोसा पहुँचाना है कि सरकार और लोग उनके साथ खड़े हैं।
बाढ़ का असर अब भी बरकरार
भाखड़ा डैम और हिमाचल से आने वाला पानी भले ही कम हो गया हो, लेकिन आनंदपुर साहिब हलके और नंगल के कई गाँव अब भी प्रभावित हैं। जगह-जगह गाद भरी हुई है, घरों की दीवारें टूटी पड़ी हैं और खेत पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं।
मक्का और धान की फसल पूरी तरह नष्ट हो चुकी है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है।
मंत्री खुद उतरे सफाई अभियान में
हरजोत सिंह बैंस ने सिर्फ आदेश देने तक ही खुद को सीमित नहीं रखा। उन्होंने सरकारी स्कूलों और गाँवों में सफाई अभियान में खुद भाग लिया। स्थानीय सरपंच और युवाओं ने भी उनके साथ मिलकर इस काम में सहयोग दिया।
बैंस ने कहा,
“लोगों के सहयोग और वाहेगुरु की कृपा से हम हर मुश्किल का हल निकाल सकते हैं। अब हमें सिर्फ शिकायतें नहीं करनीं, बल्कि मिलकर काम करना है।”
बीमारियों को रोकने के लिए कदम
ऑपरेशन राहत के तहत बाढ़ प्रभावित इलाकों में डीडीटी का छिड़काव, फॉगिंग, मेडिकल टीमों की तैनाती और वेटनरी डॉक्टरों की सेवाएं दी जा रही हैं। इसका उद्देश्य बाढ़ के बाद फैलने वाली बीमारियों को रोकना और पशुओं की देखभाल करना है।
किसानों और पशुपालकों के लिए मदद
अगले 10 दिनों तक सभी फील्ड स्टाफ — पटवारी, कानूनगो, तहसीलदार, एसडीएम और सरपंच — लगातार गाँवों में रहेंगे।
- किसानों के लिए मुआवज़ा योजनाएँ लागू की जाएंगी।
- जिन लोगों ने बाढ़ में अपने पशु खो दिए हैं, उन्हें भी विशेष आर्थिक सहायता दी जाएगी।
- 3-4 दिनों में सभी प्रभावित परिवारों का डेटा तैयार किया जाएगा, ताकि तुरंत मदद दी जा सके।
बैंस ने भरोसा जताया कि
“ऑपरेशन राहत को अगले 8-10 दिनों में बड़े स्तर पर पूरा कर लिया जाएगा, ताकि लोग जल्द से जल्द सामान्य जिंदगी में लौट सकें।”
निजी घरों को राहत केंद्र बनाया
इससे पहले मंत्री बैंस ने अपने दो निजी घर – गंभीरपुर का घर और नंगल का सेवा सदन – बाढ़ प्रभावित परिवारों के लिए पूरी तरह खोल दिए थे।
इन घरों में लोगों को 24 घंटे भोजन, रहने की जगह और इलाज की सुविधा दी गई।
बैंस ने कहा,
“मैं जो कुछ भी हूँ, वह लोगों की वजह से हूँ। इस आपदा में मेरे घर हर जरूरतमंद के लिए 24×7 खुले रहे।”
सरकार की संवेदनशीलता का उदाहरण
‘ऑपरेशन राहत’ यह दिखाता है कि पंजाब सरकार केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि जमीनी स्तर पर काम कर रही है।
इस पहल ने आनंदपुर साहिब हलके के बाढ़ पीड़ितों को एक नई उम्मीद दी है। यह सिर्फ राहत कार्य नहीं, बल्कि लोगों और सरकार के बीच विश्वास को मजबूत करने का प्रयास है।
आने वाले दिनों में जब प्रभावित परिवार अपने नए घरों में लौटेंगे और किसान फिर से खेतों में काम करेंगे, तब यह ऑपरेशन राहत पंजाब के लिए नई शुरुआत का प्रतीक बनेगा।
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Punjab Government की ‘Right to Business Act’ Policy ने बदल दिया Industrial Landscape का चेहरा

छोटे कारोबारियों के लिए वरदान साबित हुआ सरकार का ‘भरोसे पर विकास’ मॉडल
पंजाब सरकार की पहल ‘राइट टू बिज़नेस एक्ट, 2020’ ने राज्य के उद्योग जगत में नई जान फूंक दी है। यह कानून खास तौर पर उन छोटे, सूक्ष्म और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए बनाया गया है, जो पहले नई यूनिट शुरू करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते परेशान हो जाते थे।
मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की सोच थी कि अगर पंजाब को निवेश का हब बनाना है, तो सबसे पहले छोटे कारोबारियों को भरोसा और सुविधा देनी होगी। इसी विचार से यह नीति बनी, जो अब पंजाब के औद्योगिक विकास की रीढ़ बन चुकी है।
अब कारोबार शुरू करना हुआ आसान — “पहले काम, बाद में कागज़ात”
पहले किसी भी नए उद्योग को शुरू करने के लिए दर्जनों विभागों से मंज़ूरी लेनी पड़ती थी — जैसे फैक्ट्री लाइसेंस, पर्यावरण क्लियरेंस, लेबर विभाग की स्वीकृति आदि।
अब इन सब झंझटों से मुक्ति मिल चुकी है।
इस एक्ट के तहत कोई भी उद्यमी बस एक “Declaration of Intent” यानी “व्यवसाय शुरू करने की घोषणा” ऑनलाइन जमा करता है, और सरकार तुरंत एक “Certificate of In-Principle Approval” जारी कर देती है।
इसके बाद वह बिना किसी विभागीय अनुमति की प्रतीक्षा किए अपना उद्योग शुरू कर सकता है।
इस मॉडल को “Self Declaration Model” कहा गया है — यानी सरकार उद्यमी पर भरोसा करती है कि वह नियमों के अनुसार काम करेगा। यह व्यवस्था पूरी तरह भरोसे और पारदर्शिता (Trust and Transparency) पर आधारित है।
तीन साल की छूट — छोटे उद्योगों के लिए बड़ा राहत पैकेज
इस एक्ट में सरकार ने उद्यमियों को तीन साल का ग्रेस पीरियड (Grace Period) दिया है।
इस दौरान उन्हें किसी भी तरह की सरकारी अनुमति या निरीक्षण की ज़रूरत नहीं होती।
जब तक कोई गंभीर शिकायत न हो, तब तक कोई अधिकारी निरीक्षण नहीं कर सकता।
तीन साल बाद, जब उद्योग स्थिर हो जाता है, तब वे सभी ज़रूरी लाइसेंस और सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकते हैं।
यह नीति “भरोसे पर विकास” की सोच को दिखाती है — जहाँ सरकार और उद्योगपति एक-दूसरे पर विश्वास के साथ काम करते हैं।
पूरी प्रक्रिया अब Online — भ्रष्टाचार पर लगाम
अब आवेदन से लेकर प्रमाणपत्र मिलने तक की पूरी प्रक्रिया Invest Punjab Portal के ज़रिए ऑनलाइन होती है।
इससे न केवल समय बचता है बल्कि पारदर्शिता बढ़ी है और भ्रष्टाचार के अवसर लगभग खत्म हो गए हैं।
हर ज़िले में बना “District Bureau of Enterprise (DBE)”
इस नीति को ज़मीन पर लागू करने के लिए हर ज़िले में “District Bureau of Enterprise (DBE)” बनाया गया है।
यह ब्यूरो ज़िला उपायुक्त (Deputy Commissioner) की अध्यक्षता में काम करता है।
अब उद्यमियों को अलग-अलग विभागों में जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती —
एक ही दफ्तर में आवेदन, दस्तावेज़ की जाँच, प्रमाणपत्र और शिकायत निवारण सब कुछ हो जाता है।
इससे सरकारी प्रक्रिया सरल और पारदर्शी बन गई है।
बड़े पैमाने पर रोजगार और निवेश
सरकारी आँकड़ों के अनुसार, इस नीति के लागू होने के बाद अब तक सैकड़ों नए उद्योगों ने काम शुरू किया है।
इनसे लगभग 4000 से अधिक युवाओं को रोजगार मिला है और करीब ₹400 करोड़ का निवेश राज्य में आया है।
लुधियाना, जालंधर, अमृतसर, मोहाली जैसे शहरों में उद्योग जगत में नई ऊर्जा देखने को मिल रही है।
उद्यमियों का कहना है कि पहले जहाँ महीनों लग जाते थे, अब वही काम कुछ ही दिनों में पूरा हो जाता है।
महिलाओं और ग्रामीण इलाकों में नई उम्मीद
यह एक्ट महिलाओं और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए भी किसी वरदान से कम नहीं है।
अब कई महिला उद्यमी अपने छोटे-छोटे व्यवसाय जैसे फूड प्रोसेसिंग, हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट, सिलाई-कढ़ाई आदि शुरू कर रही हैं।
सरकार का लक्ष्य है कि महिलाओं और युवाओं को उद्योग जगत में आगे लाया जाए और आत्मनिर्भर पंजाब का निर्माण हो।
मुख्यमंत्री मान का विज़न — “सरकार और जनता साझेदार हैं”
मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने कहा है,
“सरकार को अपने लोगों पर भरोसा है। अगर हम उद्यमियों को सुविधा और विश्वास देंगे, तो वे पंजाब की अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयों पर पहुँचा देंगे।”
वास्तव में “राइट टू बिज़नेस एक्ट” इसी सोच को साकार करता है —
जहाँ सरकार जनता पर बोझ नहीं डालती, बल्कि उसे विकास का भागीदार बनाती है।
“राइट टू बिज़नेस एक्ट” ने पंजाब के छोटे कारोबारियों को नई उम्मीद, नया आत्मविश्वास और नई दिशा दी है।
यह सिर्फ़ एक कानून नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक क्रांति है जिसने ईमानदार उद्यमियों के लिए रास्ते खोले हैं।
आज पंजाब के उद्यमी गर्व से कह सकते हैं —
“अब कारोबार शुरू करना मुश्किल नहीं, बल्कि आसान और सम्मान की बात है।”
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Punjab में Maize Revolution: Crop Diversification से बढ़ी किसानों की उम्मीदें

“रंगला पंजाब” की ओर एक नया कदम – मक्का का रकबा 16.27% बढ़ा, अब 1 लाख हेक्टेयर तक पहुँचा
पंजाब में अब खेतों की तस्वीर बदल रही है। बरसों से जहाँ तक नज़र जाती थी, वहाँ धान की हरियाली दिखती थी — पर अब धीरे-धीरे मक्का की सुनहरी लहरें उस जगह ले रही हैं। मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की सरकार ने जिस “फसल विविधीकरण मिशन (Crop Diversification Mission)” की शुरुआत की थी, वह अब एक सच्ची “मक्का क्रांति (Maize Revolution)” बनती जा रही है।
धान से मक्का की ओर बदलाव: किसानों की नई सोच
पंजाब का किसान लंबे समय से धान-गेहूँ के चक्रव्यूह में फंसा हुआ था। धान की खेती में ज़्यादा पानी लगता है और इससे भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा था। ऊपर से फसल की लागत बढ़ती जा रही थी और आमदनी घट रही थी। किसानों की यही मुश्किल अब बदल रही है — क्योंकि सरकार ने उन्हें कम पानी वाली और ज़्यादा मुनाफ़े वाली फसलों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया है।
सरकार की मेहनत का असर अब दिख रहा है। 2024 में जहाँ मक्का की खेती 86,000 हेक्टेयर में होती थी, वहीं 2025 में यह बढ़कर 1,00,000 हेक्टेयर तक पहुँच गई है — यानी 16.27% की बढ़ोतरी। यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि पंजाब के किसानों की सोच में आए बदलाव की कहानी है।
सरकार का विज़न: “रंगला पंजाब” का असली अर्थ
“रंगला पंजाब” की बात सिर्फ़ शहरों को सुंदर बनाने तक सीमित नहीं है। इसका असली मतलब है —
धरती को स्वस्थ बनाना और किसान को समृद्ध करना।
धान की जगह मक्का जैसी फसलों को बढ़ावा देकर राज्य सरकार ने यह साबित किया है कि अगर नीयत साफ़ हो तो बदलाव ज़रूर आता है।
6 जिलों में शुरू हुआ पायलट प्रोजेक्ट
मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के नेतृत्व में राज्य सरकार ने 6 जिलों — बठिंडा, संगरूर, कपूरथला, जालंधर, गुरदासपुर और पठानकोट — में 12,000 हेक्टेयर भूमि को धान से मक्का में बदलने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है।
इस परियोजना के तहत:
- किसानों को ₹17,500 प्रति हेक्टेयर की सहायता दी जा रही है।
- इसके अलावा, किसानों को ₹7,000 प्रति एकड़ की सब्सिडी भी मिलेगी।
- किसानों का मार्गदर्शन करने के लिए 185 “किसान मित्र” (Farmer Friends) नियुक्त किए गए हैं।
- इस योजना से लगभग 30,000 किसानों को सीधा लाभ मिलेगा।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री गुरमीत सिंह खुडियाँ ने हाल ही में एक उच्च-स्तरीय समीक्षा बैठक में इस प्रोजेक्ट की प्रगति की समीक्षा की और खरीफ मक्का की सुचारू खरीद के लिए ज़रूरी निर्देश जारी किए।
जिलों में मक्का की बढ़ती खेती
कृषि विभाग के अनुसार, खरीफ मक्का अब लगभग 7,000 हेक्टेयर (19,500 एकड़) भूमि में बोया गया है।
सबसे अधिक रकबा पठानकोट जिले में दर्ज किया गया — 4,100 एकड़,
इसके बाद संगरूर (3,700), बठिंडा (3,200), जालंधर (3,100), कपूरथला (2,800) और गुरदासपुर (2,600) का स्थान है।
यह आँकड़े दिखाते हैं कि धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से किसान मक्का की खेती को अपना रहे हैं।
खरीद और गुणवत्ता पर ज़ोर
सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसानों को अपनी उपज बेचने में कोई दिक्कत न हो,
कृषि विभाग, पंजाब मंडी बोर्ड और मार्कफेड की जिला स्तरीय समितियाँ बनाई हैं।
कृषि मंत्री ने किसानों से अपील की है कि वे सूखा मक्का लेकर मंडी आएँ, ताकि खरीद में आसानी रहे।
वहीं कृषि विभाग के सचिव डॉ. बसंत गर्ग ने निर्देश दिया कि मक्का में 14% से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए।
उन्होंने सभी ज़िला अधिकारियों को किसानों को जागरूक करने और बेहतर मूल्य दिलाने के लिए सक्रिय रूप से काम करने को कहा है।
बैठक में श्री रामवीर (सचिव, पंजाब मंडी बोर्ड), श्री कुमार अमित (MD, मार्कफेड) और श्री जसवंत सिंह (निदेशक, कृषि) सहित कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।
पर्यावरण और किसानों के लिए लाभ
मक्का की खेती से:
- पानी की खपत कम होती है, जिससे भूजल स्तर बचता है।
- किसानों को बेहतर दाम और अधिक आमदनी मिलती है।
- खेत की मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है।
कुल मिलाकर, यह बदलाव न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी एक दोहरी जीत (double victory) है।
“मक्का क्रांति” — किसानों का नया आत्मविश्वास
जब सरकार किसानों को MSP की गारंटी और आर्थिक सुरक्षा का भरोसा देती है,
तो किसान पुरानी परंपराओं से निकलकर नया कदम उठाने से नहीं डरते।
पंजाब के किसान अब यही कर रहे हैं —
धान की जगह मक्का बोकर वे न सिर्फ़ अपनी ज़िंदगी बदल रहे हैं, बल्कि धरती माँ का कर्ज भी चुका रहे हैं।

यह “मक्का क्रांति” पंजाब की भावनात्मक और आर्थिक आज़ादी का प्रतीक बन चुकी है।
यह दिखाती है कि अगर सरकार और किसान एक साथ खड़े हों,
तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती — और सफलता तय होती है।
पंजाब में यह फसल विविधीकरण अभियान सिर्फ़ एक सरकारी योजना नहीं,
बल्कि एक जन-आंदोलन बन चुका है।
हर वह किसान जो धान की जगह मक्का बो रहा है,
वह असल में भविष्य की खुशहाली बो रहा है।
“रंगला पंजाब” अब खेतों से होकर निकल रहा है —
जहाँ सुनहरी मक्का की बालियाँ हवा में झूम रही हैं,
और हर किसान की मुस्कान कह रही है —
“बदलाव संभव है।”
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Ludhiana GLADA को High Court से बड़ा झटका: Plot खरीदार को पैसे लौटाने के आदेश को चुनौती देने वाली Petition खारिज

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ग्रेटर लुधियाना एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (GLADA) को बड़ा झटका देते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी। GLADA ने एक आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसे एक प्लॉट खरीदार को पैसे लौटाने का निर्देश दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि:
यह विवाद 2012 की GLADA की आवासीय प्लॉट योजना से जुड़ा है, जो शुगर मिल साइट, जगराओं में लागू थी। कांता नाम की महिला को 500 वर्ग गज का प्लॉट आवंटित किया गया था। इसके बाद GLADA की मंजूरी से यह प्लॉट शिकायतकर्ता को ट्रांसफर कर दिया गया। कांता ने लगभग ₹29.76 लाख और ₹1.08 लाख हस्तांतरण शुल्क देकर दिसंबर 2015 में पुन: आवंटन पत्र प्राप्त किया।
कब्जा नहीं मिला और शिकायत दर्ज:
आवंटन की शर्तों के अनुसार, प्लॉट का कब्जा 90 दिनों के भीतर दिया जाना था। लेकिन खरीदार ने लगातार अनुरोध करने के बावजूद, दो साल तक प्लॉट का कब्जा नहीं मिला।
इस पर शिकायतकर्ता ने सेवा में कमी (deficiency of service) का आरोप लगाते हुए उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने ब्याज और मुआवजे के साथ धनवापसी की मांग की।
SCDRC और NCDRC के आदेश:
- SCDRC (2018) ने GLADA को निर्देश दिया कि वह जमा राशि 12% ब्याज के साथ, हस्तांतरण शुल्क और उत्पीड़न के लिए ₹1 लाख मुआवजा लौटाए।
- NCDRC (2024) ने SCDRC के आदेश को कुछ बदलावों के साथ बरकरार रखा। धनवापसी और ब्याज जारी रहे, लेकिन मुआवजे की राशि को रद्द कर ₹10,000 जुर्माना लगाया।

GLADA की दलील:
GLADA ने उच्च न्यायालय में यह दावा किया कि आवंटन पत्र के सेक्शन 4 के अनुसार, अगर आवंटनकर्ता निर्धारित समय में कब्जा नहीं लेता, तो इसे “डीम्ड कब्जा” माना जाएगा। इसके अलावा, GLADA ने आरोप लगाया कि खरीदार ने प्लॉट को सट्टा (speculative) उद्देश्य से खरीदा था।
हाईकोर्ट का फैसला:
हाईकोर्ट ने GLADA की दलीलों को खारिज कर दिया। बेंच ने कहा कि GLADA ने यह साबित नहीं किया कि कब्जा समय पर दिया गया या प्लॉट के लिए जरूरी विकास कार्य – जैसे सड़क कनेक्टिविटी, सीवरेज, या पूर्णता प्रमाण पत्र – पूरे किए गए।
अदालत ने स्पष्ट किया कि “डीम्ड कब्जे का कॉन्सेप्ट केवल तभी लागू होता है जब डेवलपर पूरी तैयारी कर चुका हो और प्लॉट सौंपने के लिए तैयार हो, लेकिन खरीदार इसे लेने से इंकार करता हो।” इस केस में ऐसा कुछ साबित नहीं हुआ।
हाईकोर्ट ने GLADA की याचिका को योग्यता से रहित मानते हुए खारिज कर दिया। इससे साफ है कि उपभोक्ता को उसका हक मिलता है और डेवलपर्स को समय पर सेवा देने की जिम्मेदारी है।
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