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First Job खास होती है और बहुत कुछ सीखाती है, क्या आप कर रहे हैं अपनी पहली Job?

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first job and its importance

पढ़ाई के बाद नौकरी की तलाश में हर किसी का मन सपनों से भरा होता है। एक अच्छी कंपनी में Job पाने का सपना, खुद को सशक्त और समर्थ महसूस करने का अवसर होता है। लेकिन, इस सफर में नौकरी ढूंढना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।

नौकरी की दुनिया में कठिनाइयों और कॉम्पिटिशन का माहौल है, करियर की शुरूआत के लिए पहली नौकरी लेना एक बड़ा कदम होता है। इस समय पर, हमें न केवल अपने क्षमताओं को परखना होता है, बल्कि हमें उस नौकरी के लिए तैयार भी होना चाहिए। हमारी पहली नौकरी हमारे सपनों की तरफ बढ़ने का पहला कदम है। अगर आपकी भी यह आपकी पहली जॉब है तो आपको कई बातों का ख्याल रखना जरूरी है।

मार्गदर्शन जरूरी: नौकरी की दुनिया में निर्धारित और सही मार्गदर्शन से ही आप अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल हो सकते हैं। नौकरी के सफलता में मार्गदर्शन का महत्वपूर्ण योगदान होता है, जो आपको सही राह पर ले जाता है और आपको सफलता की ऊंचाइयों तक पहुँचाता है। सामाजिक समर्थन और सलाह आपके करियर को रास्ता दिखा सकती है। नौकरी में सफलता के लिए अनुभव से सीखना भी महत्वपूर्ण है, और मार्गदर्शन इस प्रक्रिया में हमें सही दिशा में ले जाता है।

महत्वपूर्ण बातें नोट करें: पहली नौकरी लेना आपके व्यक्तित्व विकास का पहला कदम होता है। इसलिए, अपनी पहली नौकरी में बहुत कुछ सीखने का एक अवसर होता है। अपने कार्यकाल में नोटबुक और पेन अपने साथ जरूर रखें, खासकर जब आप किसी विशेष मीटिंग में अपने सीनियर के साथ बैठे हों। इससे आप उनकी सभी महत्वपूर्ण बातें नोट कर सकते हैं। काम के दबाव में बहुत सारी जरूरी बातें भूल जाने की संभावना रहती है, और इस मामले में नोटबुक आपकी सहायता करेगी।

विकल्पों का उपयोग: नौकरी ढूंढने के दौरान, अपने ऑप्शन को सीमित न करें, बल्कि जितने ज्यादा ऑप्शन मिले, उनका ज्यादा से ज्यादा उपयोग करें। एक कंपनी में एंट्री के लिए सिर्फ रिफरेंस के भरोसे न बैठे, बल्कि ऑनलाइन जॉब वेबसाइट्स और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स का भी उपयोग करें। इससे आपको नौकरी ढूंढने में आसानी होगी, साथ ही अधिक अनुभव होगा और कंपनियों के बारे में अधिक जानकारी मिलेगी। आजकल अधिकांश कंपनियाँ अपनी नौकरी का विज्ञापन ऑनलाइन ही देती हैं।

सामाधान पर विचार करें: समस्याओं का समाधान करते समय, हमें धैर्य, निर्णयबुद्धि, और स्थिरता की आवश्यकता होती है। हमें समस्या के कारणों को समझने के बाद उसका समाधान ढूंढने के लिए कदम उठाना चाहिए। समाधान प्रक्रिया में, हमें विभिन्न विकल्पों का अध्ययन करना चाहिए और फिर निर्णय लेना चाहिए। अगर फिर भी समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है, तो हमें अपने सीनियर्स से मदद मांगने में हिचकिचाना नहीं चाहिए।

अच्छे से बात करें: आजकल के युवाओं को अपनी ही धुन में रहने की आदत हो गई है ऐसे में वे सीनियर्स के साथ ठीक से बात नहीं करते। इस आदत से उन्हें लंबे समय तक काफी कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। ऑफिस में किसी से भी बात करते समय ध्यान देना चाहिए। अपनी मेल्स और कॉल्स पर भी ध्यान देना चाहिए। कई बार बिना सोचे समझे की गई बातें आपके लिए कठिनाई का कारण बन सकती हैं, और आप फंस सकते हैं।

कॉलेज जैसा नहीं होता ऑफिस कल्चर:  ऑफिस कल्चर को समझने का सफर शुरू करना आसाना चीज नहीं है। यह कॉलेज के माहौल से बिल्कुल अलग होता है। इसमें अनेक नियम, अनुशासन, और नैतिकता के प्रति समझदारी की आवश्यकता होती है। अपने नए ऑफिस में जगह बनाने के लिए, आपको उसकी कल्चर को समझने की कोशिश करनी चाहिए।

शुरूआती दिनों में, किसी भी बात को अच्छी तरह से समझने के लिए, सही समय पर पूछाइए। अपने सीनियर्स और सहकर्मियों के साथ संवाद को संरचित रखें और उनके सलाह को ध्यान से सुनें।

ऑफिस में अच्छे बर्ताव का महत्व: ऑफिस में अच्छे बर्ताव का महत्व बहुत है। यह आपके व्यक्तित्व और प्रोफेशल डेवलपमेंट के लिए महत्वपूर्ण है। अगर आपका बर्ताव अच्छा है, तो आपके सीनियर्स आपको रिस्पेक्ट करेंगे और आपको आपके करियर में आगे बढ़ने में मदद करेंगे।

पहली नौकरी लेना एक बड़ा कदम है और इसमें कई चुनौतियाँ और सीखने का अवसर होता है। इस सफर में, मार्गदर्शन, समर्थन, और सही बर्ताव बहुत जरूरी है। अपनी पहली नौकरी में, हमें खुद को समझने का और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रतिबद्ध रहने का अवसर मिलता है। अपने सपनों को पूरा करने के लिए, हमें प्रत्येक कदम पर ध्यान और समर्थन दोनों की आवश्यकता होती है।

अंत में, यदि आप ऑफिस कल्चर को समझने के लिए सक्रिय रूप से प्रयासरत हैं, तो आप उसमें सफलता प्राप्त कर सकते हैं। धैर्य और समय के साथ, आप इस नए माहौल में अपनी जगह बना सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं।”

Health and Fitness

Mental Health: एक महत्वपूर्ण चुनौती जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए

शारीरिक स्वास्थ का ध्यान रखना जरूरी है, यह बिल्कुल सही है। हमारे शारीरिक स्वास्थ का ध्यान रखने से हम बीमारियों से बच सकते हैं, ऊर्जा बढ़ा सकते हैं और एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। लेकिन, क्या हम यह भूल रहे हैं कि हमारी मानसिक स्वास्थ भी उतना ही महत्वपूर्ण है?

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The mental health

शारीरिक स्वास्थ का ध्यान रखना जरूरी है, यह बिल्कुल सही है। हमारे शारीरिक स्वास्थ का ध्यान रखने से हम बीमारियों से बच सकते हैं, ऊर्जा बढ़ा सकते हैं और एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। लेकिन, क्या हम यह भूल रहे हैं कि हमारी मानसिक स्वास्थ भी उतना ही महत्वपूर्ण है?

मानसिक स्वास्थ न केवल हमारे दिमाग की सेहत को संतुलित रखता है, बल्कि यह हमारे जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। एक स्वस्थ मानसिक स्थिति में हम स्ट्रेस को संभाल सकते हैं, संवेदनशीलता को विकसित कर सकते हैं और सकारात्मक भावनाओं के साथ अपने जीवन को भर सकते हैं।

हालांकि, दुःख की बात यह है कि हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ और मानसिक पीड़ा को बहुत कम महत्व दिया जाता है। बहुत से लोग मानसिक स्वास्थ के मुद्दों को अनदेखा करते हैं, जिससे वे संभावित रोगों या संकटों से घिरे रहते है।

मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरुकता

मानसिक स्वास्थ्य की चर्चा करना जरूरी है, क्योंकि यह हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। हम सभी कभी-कभी तनाव, चिंता, उदासी, या दिक्कतों का सामना करते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि हम कमजोर हैं, बल्कि यह हमारी मानसिक मजबूती का परिचय कराता है।

मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए, हमें अपने अंदर की बातों को सुनना और समझना जरूरी है। हमें अपने मन की सेहत को सकारात्मक रखना चाहिए। समाज में ऐसे माहौल को बनाना होगा जहां हर कोई अपने दिल की बात कह सके। यह समाज के लिए हम सभी की जिम्मेदारी है। 

मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है भेदभाव

भेदभाव न केवल सामाजिक न्याय का मुद्दा है, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी एक गंभीर चुनौती है। इसे खत्म करने के लिए, हमें समाज में धार्मिक, जातिगत, लिंगीय और अन्य भेदों के खिलाफ लड़ने की जरूरत है।

पहले, बात करें लैंगिंग और जेंडर भेदभाव के बारे में। जब हम लोगों को उनके लिंग, जाति, या सेक्सुअल पहचान के आधार पर निर्धारित करते हैं, तो हम उन्हें एक स्थिति में प्रतिबद्ध कर देते हैं। इसका परिणाम होता है मानसिक तनाव, अवसाद, और अकेलापन।

देखा जाए तो अक्सर लड़कियों, थर्ड जेंडर या गे, होमो सेक्सुअल आदि को लिंगभेद की वजह से मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। स्कूल, दफ्तर या सोसाइटी में भी किसी खास वर्ग को अपमान या नीचा दिखाने से भी वो वर्ग मानसिक समस्याओं से गुजरता है। जिसका आप और हम अनुमान भी नहीं लगा सकते।

इसके अतिरिक्त, सामाजिक बहिष्कार और विभाजन भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। जब हम एक विशेष ग्रुप के सदस्य को उनकी पहचान के कारण बाहर कर देते हैं, तो उन्हें असुरक्षित और असमान महसूस हो सकता है। इससे उनका आत्मसम्मान कम होता है और वे अपनी मानसिक स्वास्थ्य के साथ समस्याएं झेल सकते हैं।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या

मानसिक स्वास्थ्य स्थितियाँ 14 साल की उम्र में शुरू होती हैं और 75% मानसिक स्वास्थ्य स्थितियाँ 24 साल की उम्र में विकसित होती हैं। भारत में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या अभी नया विषय है, जिसका सामना हमें संयमित और प्रभावी रूप से करना होगा। मानसिक स्वास्थ्य की गंभीरता को समझने के लिए, हमें उसकी जड़ को समझना होगा, ताकि हम समाज में को सुधार सकें और उसे सही दिशा में ले सकें। देश में लाखों लोग मानसिक विकारों से पीड़ित हैं, जो उनके और उनके परिवार के लिए अत्यंत अधिक परेशानी और पीड़ा का कारण बनते हैं। 

मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के मूल कारण बहुत सारे हो सकते हैं, जैसे दिनचर्या में बदलाव, दैनिक तनाव, जीवन में असमंजस, और भारी दवाओं का अनुप्रयोग। साथ ही, सामाजिक परिस्थितियों का भी असर होता है, जैसे वित्तीय समस्याएं, अलगाव, ब्रेकअप आदि। WHO के आँकड़े बताते है कि भारत में प्रति लाख लोगों पर आत्महत्या की औसत दर 10.9 है । 

मानसिक स्वास्थ के लिए इंश्योरेंस कंपनी

  • HDFC ERGO
  • Reliance’s Health Infinity Insurance Policy
  • ICICI Lombard
  • Loop Health
  • Aditya Birla Health Insurance
  • Niva Bupa Health Insurance

मानसिक बीमारियों की समस्या का हल हम सभी की जिम्मेदारी है। हमें समाज में सामान्यत: स्वीकृत और समानिता की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। मानसिक स्वास्थ को बनाए रखना सिर्फ एक सेहतमंद जीवन का पहला कदम नहीं है, बल्कि यह एक खुशहाल और समृद्ध समाज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए, सकारात्मक सोच, संतुलित जीवनशैली, और स्वस्थ रिश्तों का होना हमारे मानसिक स्वास्थ के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये हमें जीवन के हर क्षण को आनंदमय और संतुष्ट बनाए रखने में मदद करते। 

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Lifestyle

Importance of the ‘Generation Gap’ Between Generations Changing Over Time

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generation gap importance

“Generation Gap – आजकल ये शब्द हर पीढ़ी की जुबान पर है और ट्रेंड में भी है।  यह शब्द न केवल एक अंतर को दर्शाता है, बल्कि हमारे समाज में विविधता की भी प्रतीक है।

जनरेशन गैप का मतलब है, हर एक पीढ़ी के बीच में विचारों, सोच, व्यवहारों, और आदतों में अंतर। एक पीढ़ी के लोग अपने समय में बड़े हुए हैं, उनकी सोच और आदतें उस समय के आधार पर बनी होती हैं, जबकि दूसरी पीढ़ी के लोग नए तकनीकी उत्पादों, विचारों और समाजिक परिवर्तनों के साथ पले हैं।

उदाहरण के रूप में, हमारे माता-पिता को फीचर फोन्स की ज़रूरत नहीं थी, लेकिन हमें अब स्मार्टफोन की आवश्यकता होती है। यह सिर्फ एक तकनीकी उदाहरण नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि हर पीढ़ी के लोगों के जीवनशैली और आदतें कैसे बदल रही हैं।

जनरेशन गैप के अंतर को समझना और समाज में समाहित होना महत्वपूर्ण है। यह हमें विविधता को समझने और समाज को समृद्ध बनाने में मदद करता है। हमें यह समझना चाहिए कि जो अंतर हम देख रहे हैं, वह सिर्फ भिन्नता है, न कि अच्छाई या बुराई। हर पीढ़ी ने समाज में एक मूल्यवान योगदान दिया है, और हमें इसे सम्मान और समझ के साथ स्वीकार करना चाहिए।

जनरेशन गैप शब्द विकसित कैसे हुआ?

जनरेशन गैप की विकास की प्रक्रिया में कई कारक शामिल हैं। देखा जाए तो, यह शब्द उस समय के सामाजिक परिवेश और सांस्कृतिक परिवर्तन का परिणाम है जब नई पीढ़ियों ने परंपरागत मान्यताओं और सिद्धांतों पर प्रश्न उठाने शुरू किए।

जनरेशन गैप का पहला उल्लेख 1960 के दशक में हुआ था, जब युवा पीढ़ी और उनके माता-पिता के विचार में अंतर पाया गया। इसके बाद, हर जनरेशनों को विशिष्ट करने के लिए विभिन्न शब्दों का उपयोग किया जाना शुरू हुआ, जैसे ‘बूमर’ और ‘जनरेशन एक्स’।

इसके बाद, 1981 से 1996 के बीच जन्में लोगों को ‘मिलेनियल्स’ कहा गया। यह वह पीढ़ी है, जिसने अपने जीवन में सबसे ज्यादा बदलावों को देखा और सीखा है। तकनीकी और सामाजिक बदलावों के साथ जीवन को बदलते देखा है।

जनरेशन गैप से व्यवसायों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?

Generation Gap का व्यावसायिक संगठनों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। अलग-अलग पीढ़ियों के बीच आर्थिक, सामाजिक, और तकनीकी मतभेद हो रहे हैं, जिसके कारण व्यवसायों को नए तरीके से सोचने और काम करने की आवश्यकता है।

21वीं सदी के नवाचार और 20वीं सदी की परंपरागत सोच के बीच एक अंतर बन गया है, जिससे व्यवसायिक उद्यमों को अपनी रणनीति को समझने की जरूरत है।

मिलेनियल्स और जेन-जेक्स को व्यापारिक दृष्टिकोण में शामिल करने के लिए, उन्हें सामाजिक मीडिया, डिजिटल मार्केटिंग, और उनके आवश्यकताओं के आधार पर उत्पादों और सेवाओं को अपडेट करने की जरूरत है।

वर्तमान में सभी पीढ़ियो को छ: समूहों में बांटा गया है:

सबसे अधिक पुरानी पीढ़ी (Greatest Generation):  यह वह पीढ़ी है जो World War II के दौरान और उसके बाद जन्मी थी। इस पीढ़ी के लोग अद्भुत संघर्षशीलता, साहस, और समर्पण के प्रतीक हैं। उन्होंने अपने दौर में विश्व के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण इतिहास के घटनाक्रमों को देखा। वे समर्पित थे और समाज के लिए काम करने के लिए तैयार थे। इन्होंने अपने परिवार और समाज को विकसित करने के लिए कठिनाईयों का सामना किया।

शांत पीढ़ी (Silent Generation):  1928 से 1945 तक के बीच जन्मे ये लोग नियमों का पालन करने और लोगों का सम्मान करने में विश्वास रखते थे। इस पीढ़ी के लोग विश्व युद्ध और आर्थिक मंदी के दौर से गुजरे हैं। इस पीढ़ी के अधिकांश लोगों को आधुनिक उपकरण और तकनीक रोमांचक नहीं लगती क्योंकि वे पारंपरिक जीवन शैली जीते आए हैं।

बेबी बूमर्स (Baby boomers): 1946 से 1964 तक के बीच जन्मी इस पीढ़ी के लोगों में नौकरी और करियर का महत्वपूर्ण स्थान था, और उन्होंने अपने जीवन में उन्नति के लिए कड़ी मेहनत की। इस पीढ़ी के लोग सामाजिक और राजनीतिक बदलावों के लिए जाने जाते है।

जनरेशन एक्स (Generation X): 1965 से 1980 तक के बीच जन्मी इस पीढ़ी के लोग ने अक्सर तकनीकी उन्नति के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तनों का सामना किया है, यह पर्सनल और केबल टेलीविजन के साथ बड़ी होने वाली पहली पीढ़ी थी, इस प्रकार यह तकनीक प्रेमी बन गई।

Also Read: Food Waste: 20% भोजन कचरे में, दुनिया में 80 करोड़ से ज्यादा लोग भूखे

मिलेनियल्स (Millennials): 1981 से 1996 तक के बीच जन्मी ये पीढ़ी इंटरनेट और सोशल मीडिया के विकास के साथ बड़े हुई। ये पीढ़ी डिजिटल टेक्नॉलजी को अपनाने वाली पहली पीढ़ी थी। मिलेनियल्स को टेक्नॉलजी का उपयोग करने का पहला अनुभव मिला, जबकि पिछली पीढ़ी के लोग, यानी पुरानी पीढ़ी, को इसमें कठिनाई होती है।

जनरेशन जेड (Generation Z): 1997 और 2012 के बीच जन्मी इस पीढ़ी के लोग तकनीकी उन्नति के दौर में बड़े हो रहे हैं और सोशल मीडिया और इंटरनेट से प्रभावित है। ये लोग सामाजिक सद्भावना, समानता, और स्वतंत्रता की महत्वाकांक्षा रखते हैं। वे सामाजिक और तकनीकी उपायों का सही उपयोग करके समाज में परिवर्तन लाना चाहते है।

अगर हम सभी पीढ़ियों को देखें, तो प्रत्येक पीढ़ी ने अपने समय में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बाद में आने वाली पीढ़ियों ने भी अपने समय में तकनीकी और सामाजिक परिवर्तनों में अपना योगदान दिया। सम्ग्र रूप में, हर पीढ़ी की विशेषताएं और महत्व हैं, और समाज में समर्थन, सहयोग, और समझौते के माध्यम से हम सभी एक-दूसरे का सम्मान कर सकते हैं और साथ में आगे बढ़ सकते हैं ताकि आने वाले समय को एक नया आकार दे सकें।

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Health and Fitness

Food Waste: 20% भोजन कचरे में, दुनिया में 80 करोड़ से ज्यादा लोग भूखे

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Food wastage in india

Food Waste: दुनिया में, जहां लाखों लोग रात को भूखे पेट सोते हैं, उसमें यह स्वीकार करना दुःखद है कि हम लगभग 100 मिलियन टन Food को हर दिन waste कर रहे हैं। यह चौंकाने वाला आंकड़ा हमारी वैश्विक खाद्य प्रणाली में एक गंभीर असंतुलन को प्रकट करता है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा जारी ‘फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2024’ ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में भोजन का लगभग 20 फीसदी का भाग कचरे में फेंक दिया जाता है। यह बात चिंताजनक है कि एक तरफ भूखे लोगों की संख्या बढ़ रही है, तो दूसरी ओर हम अनावश्यक रूप से खाने लायक भोजन को फेंक रहे हैं।

60 फीसदी खाना घरों में होता है बर्बाद

‘फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2024’ की रिपोर्ट की बात करें तो विश्व स्तर पर खाद्य पदार्थों की अधिकांश बर्बादी हमारे घरों में हो रही है, इस बर्बादी की कुल मात्रा लगभग 63.1 करोड़ टन है, जिसमें से अधिकांश, यानी 60 फीसदी, घरों में बर्बाद हो रहा है। इसी तरह, खाद्य सेवा क्षेत्र में 29 करोड़ टन और फूटकर सेक्टर में 13.1 करोड़ टन खाद्य उत्पादों की बर्बादी हो रही है। आंकड़ों के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति के लिए सालाना औसतन 79 किलो खाने की बर्बादी हो रही है।

Food Wasteभारत में हर साल 7.8 करोड़ टन से ज्यादा

भारतीय समाज में भोजन की महत्वता अत्यधिक है, लेकिन क्या हम इस तरफ ध्यान दे रहे हैं? रिपोर्टों ने दिखाया कि भारत में फूड वेस्ट की मात्रा बड़ी है, जबकि कई लोगों को कुपोषण का सामना करना पड़ रहा है। भारत में फूड वेस्ट की मात्रा बड़ी है, जबकि कई लोगों को कुपोषण का सामना करना पड़ रहा है।

2021 में जारी ‘फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति बर्बाद किए जा रहे भोजन का आंकड़ा सालाना 50 किलोग्राम था। इस आंकड़े का महत्वपूर्ण हिस्सा घरों में हो रहे फूड वेस्ट है। ये सोचने वाली बात है कि एक ओर जब दुनिया में भूखमरी और अनाज की कमी के मुद्दों पर बात हो रही है और दूसरी ओर इतने बड़े पैमाने पर भोजन की बर्बादी हो रही है।

‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2023’ रिपोर्ट के अनुसार, 74.1 फीसदी भारतीयों के लिए पोषण से भरी थाली किसी लक्जरी से कम नहीं है। यह संकेत है कि इतने प्रयासों के बावजूद भी खाने की कमी का सामना करना पड़ रहा है। 2023 ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार, देश की 16.6 फीसदी आबादी किसी न किसी रूप में कुपोषण का शिकार है, जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है। एक ओर भारत में खाद्य पदार्थों की बर्बादी के आंकड़े चौंकाने वाले हैं, दूसरी ओर करोड़ों लोग भोजन के अभाव से जूझ रहे हैं।

पर्यावरण और जलवायु पर पड़ रहा बुरा असर

दरअसल, गर्म देशों की जलवायु गर्म होने के कारण ज्यादा भोजन बर्बाद होता है क्योंकि वहाँ रेफ्रिजरेशन कम होता है, जिससे खाद्य को सुरक्षित रखने में परेशानी होती है जिससे खाना जल्दी खराब होता है। गर्म तापमान और लू के कारण भोजन को सुरक्षित ढंग से रखना मुश्किल हो जाता है, जिससे बड़ी मात्रा में भोजन बर्बाद होता है। इससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ जाता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है।

खाद्य बर्बादी और नुकसान 10% वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है, जो विमानन क्षेत्र में कुल उत्सर्जन का पाँच गुणा है। इस पर ध्यान देते हुए, संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने खाद्य बर्बादी से उत्सर्जन कम करने की मांग की है।

खाने की बर्बादी के लिए जिम्मेदार कौन?

2022 में एक अध्ययन के अनुसार 28% खाना बर्बाद करने के लिए रेस्तरां, होटल, और कैंटीन जिम्मेदार थे, लेकिन सबसे ज्यादा खाने की बर्बादी लोगों के घरों में होती है। खाने की बर्बादी के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन मुख्य कारण उसकी एक्सपाइरी डेट होती है। ऐसे में हमें खाने को फेंकने के बजाय उसे इस्तेमाल करने का तरीका सिखाना चाहिए।

खाने की बर्बादी में गरीब और अमीर देश एक समान

यह सत्य है कि भोजन की बर्बादी की समस्या दुनिया भर में है, और यह न केवल गरीब देशों की समस्या है, बल्कि अमीर देशों में भी इसकी वही स्थिति है। यूएनईपी के अनुसार, खाने की बर्बादी का स्तर उच्च, उच्च मध्यम, और निम्न मध्यम आय वाले देशों में समान है। समस्या का समाधान केवल साझेदारी, संयुक्त प्रयास, और सहायता से हो सकता है। हमें यह समझना होगा कि खाद्य अपशिष्टता के समाधान में सभी का सहयोग आवश्यक है, चाहे वह अमीर हों या गरीब।

ध्यान देने वाली बात यह है कि खाद्य पदार्थों की बर्बादी वैश्विक समस्या है,  इससे भोजन तो बर्बाद हो ही रहा है बल्कि इससे जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता और प्रदूषण जैसी समस्याओं को भी बढ़ावा मिलता है। हमें इसे ध्यान में रखकर समाधान की ओर कदम बढ़ाना होगा। अगर हम खाद्य पदार्थों की बर्बादी क्यों हो रही है इस पर ध्यान दें तो हम खाद्य की व्यर्थ और बर्बादी को कम कर सकते हैं। इससे हम जलवायु परिवर्तन और आर्थिक हानि को भी कम कर सकते हैं।

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