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Islamabad : 8 वर्षीय बच्ची से दरिंदगी, दिन-दिहाड़े दिया घटना को अंजाम

पाकिस्तान की राजधानी islamabad में दिन-दिहाड़े एक नाबालिग 8 वर्षीय अफगान बच्ची से दुष्कर्म किया गया तथा लोगों की उपस्थिति मे ही आरोपी भागने मे सफल हो गया। बच्ची को अस्पताल ले जाया गया है, जहां उसकी हालत नाजुक बनी हुई है।
सीमापार सूत्रों के अनुसार नाबालिग बच्ची के पिता की शिकायत के आधार पर इस्लामाबाद की शहजाद टाऊन पुलिस ने अज्ञात आरोपी के विरुद्ध केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। जलालाबाद के रहने वाले अफगान नागरिक ने पुलिस को दी शिकायत में आरोप लगाया कि वह कुछ माह से अपने परिवार सहित मरियम मस्जिद नजदीक मोहल्ला दीपतियां में रह रहा है। वह अपने बड़े भाई सहित अपने घर मे उपस्थित था कि गली में शोर सुना तथा हम अपने घर से बाहर निकले तथा देखा कि एक नौजवान हमारी तरह भाग रहा था। बच्ची के बाप के अनुसार हम वहां गए जहां गली के मोड़ पर लोग इकट्ठे हुए थे तो वहां मैंने अपनी 8 वर्षीय बेटी को रोते हुए पाया। बेटी ने बताया कि जब वह घर के बाहर खेल रही थी तो आरोपी उसे नजदीकी एक अधूरे निर्माण वाले घर मे घसीट कर ले गया तथा बेरहमी से बलात्कार किया। बच्ची की हालत नाजुक बनी हुई है।
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USA ने H-1B Visa Fees बढ़ाई, Trump Gold Card Launch – Bhartiya IT Professionals पर बड़ा असर

अमेरिका ने H-1B वीजा के नियमों में बड़ा बदलाव किया है। अब इस वीजा के लिए 1 लाख डॉलर (~₹88 लाख) फीस देनी होगी। इससे पहले यह फीस सिर्फ ₹1 से ₹6 लाख तक थी। यह बदलाव राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आदेश पर किया गया है।
इस नए नियम के तहत, अमेरिका अब केवल सबसे टैलेंटेड और हाई स्किल्ड कर्मचारियों को ही H-1B वीजा देगा। इसका मतलब है कि मिड-लेवल और एंट्री-लेवल कर्मचारी अब अमेरिका जाना मुश्किल होगा।
ट्रम्प गोल्ड कार्ड और अन्य सुविधाएं
अमेरिका ने ‘Trump Gold Card’, ‘Trump Platinum Card’ और ‘Corporate Gold Card’ जैसी नई सुविधाएं भी शुरू की हैं।
- Trump Gold Card की कीमत: $1 मिलियन (~₹8.8 करोड़)
- यह कार्ड रखने वाले को अमेरिका में अनलिमिटेड रेसीडेंसी (स्थायी रहने का अधिकार) मिलेगा।
- हालांकि, पासपोर्ट और वोट देने का अधिकार नहीं मिलेगा।
- यह ग्रीन कार्ड की तरह ही स्थायी निवास प्रदान करेगा।
- शुरुआत में सरकार लगभग 80,000 गोल्ड कार्ड जारी करेगी।
- इसका उद्देश्य केवल सबसे योग्य और टॉप क्लास कर्मचारी अमेरिका बुलाना है।
अमेरिकी वाणिज्य मंत्री Howard Lutnick ने कहा कि इस नए प्रोग्राम से अमेरिका को लगभग $100 बिलियन की कमाई होगी।
H-1B वीजा और भारतीय IT प्रोफेशनल्स
भारत से हर साल हजारों इंजीनियर और IT प्रोफेशनल्स H-1B वीजा पर अमेरिका जाते हैं। साल 2023 में H-1B वीजा लेने वालों में 1,91,000 लोग भारतीय थे, और यह संख्या 2024 में बढ़कर 2,07,000 हो गई।
- अब इतनी ऊंची फीस के चलते कंपनियों के लिए कर्मचारियों को अमेरिका भेजना कम फायदेमंद होगा।
- 71% H-1B वीजा धारक भारतीय हैं।
- मिड-लेवल और एंट्री-लेवल कर्मचारियों के लिए वीजा मिलना मुश्किल होगा।
- बड़ी IT कंपनियां जैसे Infosys, TCS, Wipro, Cognizant और HCL सबसे ज्यादा H-1B वीजा स्पॉन्सर करती हैं।
- इसके असर से भारतीय प्रोफेशनल्स अब यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और मिडिल ईस्ट की ओर जा सकते हैं।
नया गोल्ड कार्ड EB-1 और EB-2 की जगह लेगा
- EB-1 और EB-2 ग्रीन कार्ड की श्रेणियां थीं।
- EB-1: उच्च योग्यता वाले लोगों के लिए स्थायी निवास
- EB-2: मास्टर्स या उससे ऊपर की डिग्री वाले लोगों के लिए
- अब Trump Gold Card इनकी जगह लेगा।
- केवल वे लोग ही इस कार्ड के लिए योग्य होंगे जिन्हें अमेरिका के लिए फायदेमंद माना जाएगा।
ट्रम्प प्रशासन का मकसद
राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि अब अमेरिका सिर्फ टैलेंटेड और हाई स्किल्ड लोगों को ही वीजा देगा। उनका कहना है कि यह व्यवस्था इसलिए बनाई गई है ताकि अमेरिकियों की नौकरियां सुरक्षित रहें और विदेशी कर्मचारियों का सही इस्तेमाल हो।
व्हाइट हाउस के स्टाफ सेक्रेटरी Will Sharff ने कहा कि H-1B वीजा का सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल हुआ है। अब कंपनियों को $1 लाख फीस देकर यह दिखाना होगा कि विदेश से आने वाले कर्मचारी वाकई बहुत ज्यादा स्किल्ड हैं।
H-1B वीजा का इतिहास
- H-1B वीजा 1990 में शुरू हुआ था।
- यह उन लोगों के लिए है जिनके पास Science, Technology, Engineering, Maths (STEM) या उच्च शिक्षा की डिग्री है।
- यह वीजा 3–6 साल के लिए मिलता है।
- ट्रम्प की पत्नी Melania Trump को 1996 में मॉडलिंग के लिए H-1B वीजा मिला था।
- अमेरिका हर साल लगभग 85,000 H-1B वीजा लॉटरी सिस्टम के जरिए जारी करता है।
2025 में H-1B वीजा की स्थिति
- इस साल सबसे ज्यादा H-1B वीजा Amazon को मिले हैं (~10,000+)
- इसके बाद TCS, Microsoft, Apple और Google हैं।
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China की Victory Day Parade में Putin और किम के Kim दिखे Xi Jinping, लेकिन PM Modi क्यों नहीं हुए शामिल?

चीन में बुधवार को भव्य विक्ट्री डे परेड का आयोजन हुआ। यह परेड द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के चीन में आत्मसमर्पण की 80वीं वर्षगांठ के मौके पर की गई। इस दौरान चीन ने अपनी सैन्य ताकत का बड़ा प्रदर्शन किया और कई नए आधुनिक हथियार भी दुनिया को दिखाए।
इस परेड में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन, और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ समेत 20 से ज्यादा देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल हुए।
लेकिन सबसे ज्यादा सुर्खियां शी जिनपिंग, पुतिन और किम जोंग उन की तिकड़ी ने बटोरी। यह पहली बार था जब दुनिया में सबसे ज्यादा प्रतिबंध झेल रहे पुतिन और किम, शी जिनपिंग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सार्वजनिक मंच पर नजर आए।
ट्रंप का आरोप और शी जिनपिंग का जवाब

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस परेड को लेकर चीन पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि चीन, रूस और उत्तर कोरिया मिलकर अमेरिका के खिलाफ साज़िश कर रहे हैं।
इसका जवाब देते हुए शी जिनपिंग ने अपने भाषण में कहा कि:
“चीन किसी की धौंस से डरता नहीं है।”
ट्रंप ने इसके बाद अपनी सोशल मीडिया साइट ट्रुथ सोशल पर लिखा कि द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिकी सेना ने चीन की मदद की थी।
भारत और अमेरिका के बीच तनाव, चीन से रिश्तों में नरमी
- अमेरिका और भारत के रिश्तों में इस समय टैरिफ वॉर के कारण खटास आई हुई है।
- ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 50% तक टैरिफ लगा दिया है।
- वहीं, चीन और भारत के रिश्ते 2020 में गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद बेहद खराब हो गए थे।
लेकिन पिछले कुछ समय से दोनों देशों के बीच तनाव में थोड़ी कमी आई है।
- हाल ही में चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत आए थे।
- इसके बाद भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर चीन गए।
- सात साल बाद पीएम मोदी भी चीन पहुंचे और शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक की।
एससीओ सम्मेलन और परेड
31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन हुआ।
इस सम्मेलन में 10 सदस्य देशों और साझेदार देशों के नेता शामिल हुए।
- पुतिन इस दौरान चार दिन तक चीन में रहे।
- ज्यादातर नेता 3 सितंबर को आयोजित विक्ट्री डे परेड में भी पहुंचे।
- लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परेड में शामिल नहीं हुए, जिससे कई सवाल उठने लगे।
पीएम मोदी क्यों नहीं गए परेड में?
इस सवाल के कई जवाब विशेषज्ञों ने दिए। आइए समझते हैं कि मोदी ने यह बड़ा फैसला क्यों लिया:
1. जापान को नाराज़ नहीं करना चाहता भारत
इस परेड का मुख्य उद्देश्य था जापान पर जीत का जश्न मनाना।
- JNU के प्रोफेसर अरविंद येलेरी के मुताबिक:
“भारत का संघर्ष ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ था, जापान के खिलाफ नहीं।ऐसे में भारत इस परेड में शामिल होकर जापान को गलत संदेश नहीं देना चाहता था।”
- जापान वर्तमान में भारत का महत्वपूर्ण दोस्त और रणनीतिक साझेदार है।
- पीएम मोदी हाल ही में जापान गए थे।
- अगर मोदी इस परेड में चीन और उत्तर कोरिया के साथ मंच साझा करते, तो यह जापान को असहज कर देता।
2. चीन के सैन्य प्रदर्शन को समर्थन नहीं देना चाहता भारत
- परेड में चीन ने अपनी सेना की ताकत और आधुनिक हथियारों का प्रदर्शन किया।
- प्रोफेसर अरविंद येलेरी कहते हैं:
“अगर पीएम मोदी इस परेड में शामिल होते, तो यह चीन के सैन्य वर्चस्व का समर्थन करने जैसा होता।चीन इसे अपने प्रचार के लिए इस्तेमाल करता।”
भारत नहीं चाहता कि उसके शामिल होने से यह संदेश जाए कि वह चीन की बढ़ती ताकत का समर्थन कर रहा है।
3. भारत का लोकतांत्रिक देशों के साथ खड़ा होना
JNU के ही एक अन्य प्रोफेसर अमिताभ सिंह कहते हैं:
“भारत उन देशों के साथ खड़ा नहीं दिखना चाहता जो लोकतांत्रिक और उदारवादी नहीं हैं।विक्ट्री डे परेड में शामिल कई देशों का रिकॉर्ड नागरिक अधिकारों और लोकतंत्र के मामले में बेहद कमजोर है।”
इस परेड को चीन ने एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था (alternative world order) के तौर पर भी पेश किया।
भारत नहीं चाहता कि वह इस व्यवस्था का हिस्सा दिखे।
क्या अमेरिका को नाराज़ न करने के लिए मोदी नहीं गए?
कुछ लोगों का मानना था कि मोदी परेड में इसलिए नहीं गए ताकि अमेरिका नाराज़ न हो।
लेकिन प्रोफेसर अमिताभ सिंह इससे असहमत हैं।
उन्होंने कहा:
“मुझे नहीं लगता कि यह फैसला ट्रंप की वजह से लिया गया।यह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का हिस्सा है।भारत जानता है कि उसके और चीन के मतभेद इतने गहरे हैं कि एक दौरे से हल नहीं होंगे।”
भारत का संदेश
पीएम मोदी के परेड में शामिल न होने से दुनिया को ये संदेश मिले:
- भारत चीन के नेतृत्व वाले विश्व व्यवस्था का हिस्सा नहीं बनेगा।
- भारत लोकतांत्रिक और उदारवादी देशों के साथ खड़ा रहना चाहता है।
- भारत अपने दोस्त जापान के साथ रिश्तों को मजबूत बनाए रखना चाहता है।
- भारत चीन के सैन्य शक्ति प्रदर्शन को समर्थन नहीं देगा।
चीन की विक्ट्री डे परेड में पुतिन और किम जोंग उन के साथ दुनिया के कई नेता शामिल हुए, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गैरमौजूदगी ने साफ कर दिया कि भारत की विदेश नीति स्वतंत्र, संतुलित और रणनीतिक है।
भारत ने इस कदम से यह संदेश दिया कि वह न तो चीन के सैन्य प्रदर्शन का हिस्सा बनेगा और न ही जापान के खिलाफ कोई संकेत देगा।
भारत लोकतांत्रिक और उदारवादी देशों के साथ खड़ा होकर अपनी वैश्विक छवि को और मजबूत करना चाहता है।
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New World Order का संकेत? Beijing में Xi Jinping, Putin और Kim का साथ चलना दुनिया को क्या संदेश दे रहा है

बीजिंग में हुए चीन के सबसे बड़े सैन्य परेड ने सिर्फ हथियारों की ताकत ही नहीं दिखाई, बल्कि एक ऐसी तस्वीर दुनिया के सामने रखी जिसने वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी। इस परेड का सबसे चर्चित और प्रतीकात्मक पल वह था जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन एक साथ चलते नजर आए।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह तस्वीर पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका, को एक सख्त संदेश है कि चीन, रूस और उत्तर कोरिया अब खुलकर एकजुट हो रहे हैं। यह नजारा एक नई विश्व व्यवस्था (New World Order) की शुरुआत का संकेत भी माना जा रहा है।
परेड का आयोजन और खास मेहमान
यह सैन्य परेड बीजिंग के तियानआनमेन स्क्वायर में आयोजित की गई थी। यह परेड जापान पर जीत और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के 80 साल पूरे होने के मौके पर हुई।
इस मौके पर करीब 20 देशों के नेता शामिल हुए, लेकिन मुख्य आकर्षण रहे:
- शी जिनपिंग – चीन के राष्ट्रपति
- व्लादिमीर पुतिन – रूस के राष्ट्रपति
- किम जोंग-उन – उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता
- शहबाज शरीफ – पाकिस्तान के प्रधानमंत्री
शी जिनपिंग ने पुतिन और किम का गर्मजोशी से स्वागत किया। वह दोनों नेताओं के साथ लाल कालीन पर चलते हुए परेड स्थल तक पहुंचे। इस दौरान शी बीच में थे, उनके दाईं ओर पुतिन और बाईं ओर किम थे। यह दृश्य ही अपने आप में एक बड़ा राजनीतिक संदेश था।
ताकत का प्रदर्शन और शी का भाषण
इस परेड में चीन ने अपनी नवीनतम सैन्य तकनीक और हथियारों का प्रदर्शन किया। हजारों सैनिकों ने मार्च पास्ट किया और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने अपनी शक्ति का परिचय दिया।
शी जिनपिंग ने अपने संबोधन में कहा:
“आज दुनिया एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां शांति या युद्ध, संवाद या टकराव, जीत-जीत या ज़ीरो-सम गेम का चुनाव करना होगा। चीन हमेशा इतिहास के सही पक्ष में खड़ा रहेगा।”
शी ने बिना नाम लिए अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा कि चीन किसी भी दबाव या धमकी से डरने वाला नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि चीन अब “अविराम और अजेय” (unstoppable) है और सभी देशों को एकजुट होकर युद्ध के कारणों को खत्म करना चाहिए ताकि ऐतिहासिक त्रासदियां दोबारा न हों।

तस्वीर का गहरा संदेश
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह तस्वीर तीन बड़े संदेश दे रही है:
- चीन अपने सहयोगियों के साथ खड़ा है
- यह तस्वीर साफ दिखाती है कि चीन चाहे जितनी भी पश्चिमी पाबंदियां (sanctions) लगें, वह रूस और उत्तर कोरिया का साथ नहीं छोड़ेगा।
- यह खासकर रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, जहां पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहे हैं।
- अमेरिका-नेतृत्व वाले सिस्टम को चुनौती
- शी जिनपिंग लंबे समय से नई विश्व व्यवस्था बनाने की बात करते रहे हैं।
- यह तस्वीर और यह आयोजन दिखाते हैं कि चीन अब अमेरिका का विकल्प बनने की तैयारी कर रहा है।
- विशेषज्ञ कहते हैं कि शी यह दिखाना चाहते हैं कि अब उनका खुद का प्रभाव क्षेत्र (sphere of influence) है।
- रूस-उत्तर कोरिया-चीन का मजबूत गठबंधन
- पहले खबरें थीं कि रूस और उत्तर कोरिया की बढ़ती नजदीकियां चीन को परेशान कर रही हैं।
- लेकिन इस परेड की यह तस्वीर दिखाती है कि तीनों देश एक ही पेज पर हैं और रणनीतिक रूप से एकजुट हैं।
सूचना के अनुसार, एक पत्रकार ने लिखा कि यह तस्वीर पश्चिमी देशों के लिए चिंता का कारण है और यह संकेत देती है कि अमेरिका के पीछे हटने से बनी खाली जगह को चीन भर रहा है।
अमेरिका की नाराजगी और ट्रंप की प्रतिक्रिया
इस तस्वीर ने अमेरिका में खलबली मचा दी, खासकर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को।
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा:
“मेरी तरफ से व्लादिमीर पुतिन और किम जोंग-उन को शुभकामनाएं, जब आप अमेरिका के खिलाफ साजिश रच रहे हैं।”
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 80 साल पहले जापान को हराने में अमेरिका की बड़ी भूमिका थी, और चीन को यह नहीं भूलना चाहिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान दर्शाता है कि अमेरिका की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति और टैरिफ युद्ध (tariff wars) अब उल्टा असर डाल रहे हैं, और चीन इसका फायदा उठा रहा है।
विशेषज्ञों की राय
- वें-टी सुंग (Atlantic Council)
“चीन यह संदेश दे रहा है कि चाहे पश्चिमी देश कितने भी प्रतिबंध लगाएं, वह अपने दोस्तों का साथ नहीं छोड़ेगा।”
- अल्फ्रेड वू (चीनी राजनीति विशेषज्ञ)
“शी जिनपिंग यह दिखाना चाहते हैं कि अब चीन इतना मजबूत है कि उसका खुद का प्रभाव क्षेत्र है।”
- सीएनएन का विश्लेषण
“यह मुलाकात दिखाती है कि अमेरिकी कूटनीति इन नेताओं को रोकने में नाकाम रही है।”
भविष्य की दिशा
- यह तस्वीर चाहे प्रतीकात्मक हो, लेकिन भविष्य की वैश्विक राजनीति पर इसका गहरा असर पड़ सकता है।
- अब यह देखना होगा कि क्या यह एकता केवल दिखावे तक सीमित रहती है या यह व्यावहारिक कदमों में बदलती है, जैसे:
- सैन्य सहयोग
- आर्थिक साझेदारी
- राजनीतिक समझौते
फिलहाल पश्चिमी देश इस स्थिति को चिंता और अलार्म के साथ देख रहे हैं।
बीजिंग की यह तस्वीर सिर्फ एक फोटो नहीं है, बल्कि यह तीन शक्तिशाली देशों की एकजुटता का प्रतीक है।
यह संकेत देती है कि आने वाले समय में अमेरिका और पश्चिमी देशों के सामने नई चुनौतियां खड़ी होंगी।
चीन, रूस और उत्तर कोरिया का यह गठबंधन अगर मजबूत हुआ, तो दुनिया की शक्ति संतुलन (power balance) पूरी तरह बदल सकता है।
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