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जानिए गोवर्धन पूजा का महत्व, कौनसा समय रहेगा पूजा के लिए सही

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गोवर्धन या अन्नकूट का त्योहार भगवान कृष्ण को समर्पित है। इस दिन भक्त भगवान श्री कृष्ण के लिए भोग प्रसाद तैयार करते हैं और सच्ची श्रद्धा से भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं।


साल 2023 में गोवर्धन पर्व 14 नवंबर को मनाया जाएगा. इस दिन भगवान को 56 चीजें अर्पित की जाती हैं। यह त्यौहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है।


इस त्यौहार का उत्तर भारत में बहुत महत्व है, यह हरियाणा, पंजाब, बिहार और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा का त्यौहार बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।


इस दिन गाय के गोबर से टीले बनाए जाते हैं और फिर इन पहाड़ियों को फूलों से सजाया जाता है और कुमकुम और अक्षत से पूजा की जाती है।
वहीं कुछ लोग गोवर्धन के इस शुभ दिन पर अपने बैलों और गायों को सजाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।

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Shardiya Navratri 2025 का पहला दिन: मां शैलपुत्री की पूजा, कलश स्थापना का महत्व और शुभ मुहूर्त

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आज से शुरू हो रहा है शारदीय नवरात्रि 2025, जो पूरे देश में भक्तिभाव और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह पर्व मां दुर्गा की शक्ति, भक्ति और आस्था का प्रतीक है। नवरात्रि के ये नौ दिन बेहद खास माने जाते हैं क्योंकि इस दौरान देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।

इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 22 सितंबर, सोमवार से हो रही है। पहले दिन को प्रतिपदा तिथि कहते हैं और इस दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा होती है। इस दिन की शुरुआत कलश स्थापना से होती है, जिसे घटस्थापना भी कहते हैं। माना जाता है कि सही विधि से कलश स्थापना करने और मां की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

मां शैलपुत्री कौन हैं?

मां शैलपुत्री, पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। ‘शैल’ का अर्थ होता है पर्वत और ‘पुत्री’ यानी बेटी।

  • मां का वाहन नंदी बैल है।
  • उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है।
  • मां शैलपुत्री को प्रकृति, स्थिरता और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

कहते हैं कि मां शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में स्थिरता आती है, आत्मविश्वास बढ़ता है और मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

शारदीय नवरात्रि का महत्व

नवरात्रि का समय भक्ति, आत्म-चिंतन और शुद्धिकरण का अवसर होता है। इन नौ दिनों में भक्तजन मां दुर्गा की आराधना करते हैं, व्रत रखते हैं और देवी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते हैं।

  • यह पर्व नकारात्मक ऊर्जा को दूर करके जीवन में positive energy लाता है।
  • मां दुर्गा की कृपा से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
  • यह पर्व आत्मबल और आस्था को मजबूत करता है।

कलश स्थापना का महत्व और शुभ मुहूर्त

पहले दिन कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। इसे शुभ समय में करना बहुत जरूरी है।

  • घटस्थापना का शुभ मुहूर्त:
    • सुबह 6:09 बजे से 8:06 बजे तक।
    • अगर यह समय छूट जाए, तो अभिजीत मुहूर्त में भी कलश स्थापना कर सकते हैं,
      जो 11:49 बजे से 12:38 बजे तक रहेगा।

महत्व:
कलश स्थापना से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है और यह देवी दुर्गा का आह्वान करने का प्रतीक है।

कलश स्थापना और पूजा विधि

मां शैलपुत्री की पूजा करने के लिए ये स्टेप्स फॉलो करें:

  1. सुबह स्नान करके साफ-सुथरे सफेद या लाल कपड़े पहनें।
  2. पूजा स्थल को गंगाजल या पानी से शुद्ध करें।
  3. चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और मिट्टी के बर्तन में जौ बोएं
  4. एक कलश में गंगाजल भरें और उसमें सुपारी, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्के डालें।
  5. कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें और उसके ऊपर नारियल रखें।
  6. कलश को जौ वाले बर्तन के ऊपर स्थापित करें।
  7. मां शैलपुत्री की मूर्ति या फोटो को चौकी पर स्थापित करें।
  8. मां को सिंदूर, रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप अर्पित करें।
  9. भोग में गाय के घी से बनी चीजें जैसे हलवा, पेड़ा या सफेद बर्फी चढ़ाएं।
  10. सुबह और शाम मां की आरती करें और परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।

मां का प्रिय रंग और फूल

  • मां शैलपुत्री को सफेद रंग बहुत प्रिय है।
  • इस दिन सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है।
  • पूजा में लाल गुड़हल का फूल या कोई भी सफेद फूल जरूर अर्पित करें।

मां शैलपुत्री का प्रिय भोग

मां को गाय के घी से बनी चीजें चढ़ाना सबसे शुभ माना जाता है।

  • घी से बने हलवे,
  • सफेद पेड़े या
  • सफेद बर्फी का भोग लगाया जाता है।

मां शैलपुत्री के मंत्र

पूजा के दौरान इन मंत्रों का जाप करना बहुत फलदायी माना जाता है:

  1. सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते।।
  2. या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

इसके अलावा, सिर्फ इस मंत्र का जाप भी कर सकते हैं:
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः।।”
इसका 108 बार जप करने से मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

नवरात्रि का पहला दिन क्यों खास है

नवरात्रि का पहला दिन आने वाले पूरे नौ दिनों की ऊर्जा और माहौल तय करता है।

  • सही विधि से पूजा करने पर जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
  • घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
  • यह दिन नए आरंभ और सकारात्मक सोच का प्रतीक है।

शारदीय नवरात्रि का पहला दिन मां दुर्गा के आशीर्वाद के साथ जीवन में नई शुरुआत करने का दिन है।
मां शैलपुत्री की पूजा, कलश स्थापना और सच्ची भक्ति से नवरात्रि के ये नौ दिन और भी मंगलमय बन जाते हैं।
तो इस नवरात्रि, मां शैलपुत्री की कृपा से अपने जीवन में prosperity, peace और happiness लाने का संकल्प लें।

जय माता दी!

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Kedarnath Dham के कपाट खुले: 108 क्विंटल फूलों से सजा मंदिर, पहले ही दिन 10 हजार श्रद्धालु पहुंचे।

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Kedarnath Dham के कपाट शुक्रवार को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। कपाट खुलते ही भक्तों ने मंदिर में जल रही अखंड ज्योति के दर्शन किए। इसके बाद रुद्राभिषेक, शिवाष्टक, शिव तांडव स्तोत्र और केदाराष्टक का पाठ किया गया।

मंदिर में सबसे पहले कर्नाटक के वीरशैव लिंगायत समुदाय के मुख्य पुजारी (रावल) भीमशंकर पहुंचे। इसके बाद बाबा केदार पर छह महीने पहले चढ़ाया गया भीष्म शृंगार हटाया गया।

मंदिर को 54 किस्म के 108 क्विंटल फूलों से सजाया गया है। इसमें नेपाल, थाईलैंड और श्रीलंका जैसे विभिन्न देशों से लाए गए गुलाब और गेंदा के फूल शामिल हैं।

पहले दिन करीब 10 हजार लोग दर्शन के लिए पहुंचे। भीड़ मैनेज करने के लिए टोकन सिस्टम से दर्शन करवाए जा रहे हैं। भक्त अब अगले 6 महीने तक दर्शन कर सकेंगे।

जून से अगस्त के बीच मौसम ठीक रहा तो इस बार 25 लाख से ज्यादा लोगों के केदारनाथ धाम पहुंचने का अनुमान है।

30 अप्रैल (अक्षय तृतीया) से चारधाम यात्रा शुरू हो चुकी है। गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुल गए हैं। बद्रीनाथ धाम के कपाट 4 मई को खोले जाएंगे।

क्या है बाबा का भीष्म शृंगार, जिसे करने में 5 घंटे लगते हैं

पट खुलने के बाद भीष्म शृंगार हटाया जाएगा। यह प्रक्रिया भी दिलचस्प है। सबसे पहले शिवलिंग के पास रखे गए मौसमी फल और ड्राई फ्रूट्स का ढेर हटाते हैं। इसे आर्घा कहते हैं।

फिर बाबा पर चढ़ी एक से लेकर 12 मुखी रुद्राक्ष की मालाएं निकालते हैं। इसके बाद शिवलिंग पर चारों ओर लपेटा गया सफेद कॉटन का कपड़ा हटाया जाता है।

पट बंद करते समय शिवलिंग पर 6 लीटर पिघले हुए शुद्ध घी का लेपन करते हैं, जो इस वक्त जमा होता है, इसे धीरे-धीरे शिवलिंग से निकालते हैं।

इसके बाद होता है शिवलिंग का गंगा स्नान। गोमूत्र, दूध, शहद और पंचामृत स्नान के बाद बाबा केदार को नए फूलों, भस्म लेप और चंदन का तिलक लगाकर तैयार किया जाएगा।

कपाट बंद करते समय भीष्म शृंगार में करीब 5 घंटे लग जाते हैं, लेकिन कपाट खोलने के बाद इसे आधे घंटे में हटा दिया जाता है।

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कब है तुलसी विवाह? इस दिन तुलसी माता का विवाह करने से मिलेगा लाभ

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कार्तिक मास के शुकल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है. इसके अगले दिन ही तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है. इस दिन माता तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ किया जाता है. माना जाता है कि जो व्यक्ति तुलसी. विवाह का अनुष्ठान करता है उसे उतना ही पुण्य प्राप्त होता है, जितना कन्यादान से मिलता है. दरअसल, शालिग्राम भगवान विष्णु का ही अवतार माने जाते हैं. तो आइए जानते हैं कि तुलसी माता का विवाह किन शुभ मुहूर्तों में किया जाए. 

देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास की समाप्ति होती है. इसके बाद तुलसी-शालिग्राम विवाह का आयोजन किया जाता है. तुलसी विवाह के दिन द्वादशी तिथि 23 नवंबर को रात 9 बजकर 1 मिनट पर शुरू होगी और समापन 24 नवंबर को शाम 7 बजकर 6 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, तुलसी का विवाह इस बार 24 नवंबर को ही होगा. 
इस बार तुलसी विवाह के लिए कई सारे शुभ मुहूर्त बन रहे हैं. इस दिन तुलसी विवाह का समय शाम 5 बजकर 25 मिनट से शुरू होगा. इसके अलावा सर्वार्थ सिद्धि योग, सिद्धि योग भी है |
सर्वार्थ सिद्धि योग- पूरे दिन
अमृत सिद्धि योग- सुबह 6 बजकर 51 मिनट से लेकर शाम 4 बजकर 1 मिनट तक
सिद्धि योग- सुबह 9 बजकर 5 मिनट तक 
तुलसी विवाह का आयोजन करना बहुत शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह कराने वाले व्यक्ति के जीवन से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उस पर भगवान हरि की विशेष कृपा होती है. तुलसी विवाह को कन्यादान जितना पुण्य कार्य माना जाता है. कहा जाता है कि तुलसी विवाह संपन्न कराने वालों को वैवाहिक सुख प्राप्त होता है.

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